
नई दिल्ली। अगर आप अपने गार्डन में परिजात यानी हरसिंगार लगाते है तो यह न केलव आपको सुंदरता और खुशबू देगा बल्कि आयुर्वेद में इसे कई रोगों के इलाज में प्रयोग किया जाता है। यह पौधा धार्मिक, औषधीय और सुंदरता हर दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है। परिजात की पहचान न केलव इसके सफेद फूले से होती है ब्लकी इसकी खुशबू रातभर वातावरण को महका देती है। परिजात सिर्फ एक सुंदर और सुगंधित फूल ही नहीं है बल्कि यह प्रकृति का एक ऐसा अद्भुत तोहफा है जो शरीर, मन और आत्मा तीनों को स्वस्थ रखता है। इसकी औषधीय विशेषताएं इसे हर घर के बगीचे में स्थान देने योग्य बनाती हैं।
धार्मिक महत्व और पौराणिक कथा
हिंदू धर्म में परिजात का विशेष स्थान है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, समुद्र मंथन के दौरान परिजात वृक्ष का उद्भव हुआ था। कहा जाता है कि भगवान कृष्ण इस वृक्ष को स्वर्ग से द्वारका ले आए थे। इसलिए इसे 'स्वर्ग वृक्ष' भी कहा जाता है। कई मंदिरों के प्रांगण में परिजात का पौधा लगाया जाता है क्योंकि इसे पवित्र और शुभ माना जाता है। परिजात का पेड़ न केवल औषधीय दृष्टि से लाभकारी है बल्कि यह वातावरण को भी शुद्ध करता है।
क्या हैं इसके फायदे
आयुर्वेद में परिजात को कल्पवृक्ष की संज्ञा दी गई है। इसके के फूल, पत्तियां, छाल और बीज सभी औषधीय दृष्टि से उपयोगी हैं।
परिजात की पत्तियों का काढ़ा गठिया, जोड़ों के दर्द और बुखार में बेहद कारगर माना जाता है।
इसके पत्तों में एंटी-वायरल और एंटी-बैक्टीरियल गुण पाए जाते हैं। परिजात की पत्तियों का काढ़ा मलेरिया, चिकनगुनिया और डेंगू जैसे बुखार में भी शरीर को राहत पहुंचाता है।
रिसर्च में पाया गया है कि परिजात के अर्क से ब्लड शुगर लेवल कंट्रोल रहता है। साथ ही यह लिवर को डिटॉक्स करने में मदद करता है और उसकी कार्यक्षमता बढ़ाता है।