
नई दिल्ली। भारत में पारंपरिक औषधियों की मांग लगातार बढ़ रही है। आयुर्वेदिक दवाओं, हर्बल उत्पादों और घरेलू नुस्खों में इस्तेमाल होने वाले पौधों में मुलेठी का विशेष स्थान है। यह पौधा न केवल सेहत के लिए लाभकारी है, बल्कि किसानों के लिए भी एक सुनहरा मौका लेकर आता है। कम लागत और लंबे समय तक टिकाऊ उत्पादन की वजह से आज देशभर में इसकी खेती लोकप्रिय हो रही है।
मुलेठी क्या है
मुलेठी एक झाड़ीदार औषधीय पौधा है, जिसे भारत में यष्टिमधु या मधुयष्टि के नाम से भी जाना जाता है. इसका वैज्ञानिक नाम है। इस पौधे की जड़ें औषधीय गुणों से भरपूर होती हैं। इन्हें सुखाकर पाउडर या टुकड़ों के रूप में आयुर्वेदिक और एलोपैथिक दवाओं में इस्तेमाल किया जाता है। इसके अलावा यह त्वचा और बालों से जुड़े कई उत्पादों में भी उपयोग की जाती है।
उपयुक्त जलवायु और मिट्टी
मुलेठी की खेती भारत के लगभग सभी हिस्सों में की जा सकती है, लेकिन इसके लिए गर्म और शुष्क जलवायु सबसे बेहतर मानी जाती है। जहां तापमान 20 से 35 डिग्री सेल्सियस के बीच रहता है, वहां यह पौधा अच्छी तरह विकसित होता है। मिट्टी की बात करें तो बलुई दोमट या रेतीली मिट्टी इसके लिए सबसे उपयुक्त होती है। मिट्टी का pH स्तर 6 से 8.2 के बीच रहना चाहिए। ध्यान रखें कि खेत में पानी का जमाव न हो, क्योंकि इससे जड़ें सड़ सकती हैं।
बीज और खेत की तैयारी
खेती की शुरुआत करने से पहले खेत की 2-3 बार गहरी जुताई करनी चाहिए ताकि मिट्टी भुरभुरी हो जाए और खरपतवार नष्ट हो जाएं। अंतिम जुताई से पहले प्रति एकड़ 10-12 टन गोबर की खाद डालना लाभकारी होता है।
रोपाई के लिए 7 से 9 इंच लंबी जड़ों का चयन करें, जिनमें 3-4 आंखें मौजूद हों. प्रति एकड़ 100 से 125 किलोग्राम जड़ें पर्याप्त होती हैं. रोपाई करते समय कतारों के बीच 90 सेंटीमीटर और पौधों के बीच 45 सेंटीमीटर की दूरी रखें.