दिल्ली में दिवाली पर हुई आतिशबाजी के धुएं से बढ़ी घुटन

    23-Oct-2025
Total Views |



नई दिल्ली।इस बार वजह पराली नहीं बल्कि दिल्ली एनसीआर में फूटे पटाखे सांसों की घुटन के लिए जिम्मेदार रहे। पर्यावरणीय संस्था क्लाइमेट ट्रेंड्स के विश्लेषण के अनुसार, पंजाब-हरियाणा में पराली जलाने की घटनाओं में 77% कमी के बावजूद दिवाली की रात दिल्ली का पीएम 2.5 स्तर 675माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर तक पहुंच गया। यह सामान्य से 212 प्रतिशत अधिक है। दिलचस्प यह कि कथित ग्रीन पटाखे भी हवा को बचाने में नाकाम रहे। पर्यावरण व जलवायु अनुसंधान संस्था क्लाइमेट ट्रेंड्स की ओर से किए गए विश्लेषण से खुलासा हुआ है कि वर्ष 2025 की दिवाली दिल्ली-एनसीआर के लिए हाल के वर्षों की सबसे प्रदूषित रातों में से एक रही। रिपोर्ट में कहा गया है, 20 अक्टूबर की रात पीएम 2.5 का स्तर 675 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर तक जा पहुंचा, जबकि दिवाली से पहले यह केवल 156.6 माइक्रोग्राम था। औसतन, दिवाली के बाद का पीएम 2.5 स्तर 488 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर दर्ज हुआ जो सामान्य से तीन गुना अधिक था।

प्रदूषण में तेज वृद्धि

शोधकर्ताओं के अनुसार इस वर्ष प्रदूषण में तेज वृद्धि पटाखों के धुएं के कारण हुई है। पराली की घटनाएं घटीं, लेकिन दिल्ली में पटाखों का धुआं बेकाबू रहा। धुएं के कारण पराली की घटनाएं घटीं, लेकिन दिल्ली में पटाखों का धुआं बेकाबू रहा। दिल्ली सरकार और एनजीटी के सख्त प्रतिबंधों के बावजूद बाजार में कथित ग्रीन पटाखे बड़े पैमाने पर बेचे और जलाए गए, लेकिन क्लाइमेट ट्रेंड्स के अनुसार, इन पटाखों से भी सामान्य पटाखों जितना ही प्रदूषण हुआ। दरअसल, ग्रीन कहे जाने वाले पटाखों में भी धातु और ऑक्सीडाइजर जैसे तत्व मौजूद होते हैं, जो जलने पर नाइट्रोजन ऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड और भारी धातु जैसे लेड, बेरियम का उत्सर्जन करते हैं।

पराली को क्लीनचिट

रिपोर्ट के मुताबिक, पंजाब और हरियाणा में इस बार पराली जलाने की घटनाओं में 77% कमी आई है। क्लाइमेट ट्रेंड्स के अनुसार यह गिरावट बाढ़ और फसल चक्र में देरी के कारण हुई। 1 से 12 अक्टूबर के बीच पराली की घटनाएं सबसे अधिक होती हैं, पर इस साल उस अवधि में भी दिल्ली के पीएम 2.5 स्तर में 15.5% की कमी दर्ज की गई।

ग्रीन पटाखे कम प्रदूषण करते हैं

वैज्ञानिकों का मानना है कि ग्रीन पटाखे सिर्फ कागजी दावा हैं क्योंकि इनमें प्रदूषण घटाने की तकनीक सीमित है। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मद्रास के एक अध्ययन के अनुसार, ग्रीन पटाखे पारंपरिक पटाखों की तुलना में औसतन 15 से 20 प्रतिशत कम प्रदूषण तो करते हैं, लेकिन जब लाखों पटाखे एक साथ फूटते हैं तो यह फर्क व्यावहारिक रूप से नगण्य रह जाता है।