अश्वगंधा की बागवानी से लाखों की कमाई, फल से लेकर पत्ते बेचें

    27-Oct-2025
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नई दिल्ली। अश्वगंधा एक जबरदस्त मांग वाली फसल है। अश्वगंधा का उपयोग शरीर में ऊर्जा लाने के लिए, इम्यूनिटी बूस्ट करने के लिए पर्याप्त मात्रा में किया जाता है। अपने औषधीय गुणों की वजह से यह हमेशा मार्केट में डिमांड में रहती है। खासकर कोरोना महामारी के बाद, बहुत से लोगों ने इम्यूनिटी बढ़ाने के लिए अश्वगंधा का ही इस्तेमाल किया और बहुत सारे लोगों ने कोरोना से ठीक होने का दावा भी किया था।

आयुर्वेद में है वर्णन

अश्वगंधा को पाउडर के रूप में खाया जाता है। वहीं दवाओं के रूप में उपयोग में लाए जाने पर कैप्सूल के तौर पर भी अश्वगंधा का उपयोग किया जाता है। अश्वगंधा मार्केट में अच्छे रेट पर बिकता है और इसकी खेती करने वाले किसानों को अच्छी आमदनी होती है। यही वजह है कि आजकल ज्यादातर किसान अश्वगंधा की खेती करना चाहते हैं। अश्वगंधा की खेती कर किसान लाखों रुपए का कारोबार कर सकते हैं।

क्या है अश्वगंधा?

विदेशों में भारतीय जिनसेंग और शीतकालीन चेरी के नाम से जाने जाना वाला अश्वगंधा एक कठोर पौधा है। यह सूखा पौधा होता है, जिसे भारत के उत्तर पश्चिम और मध्य में उगाया जाता है। भारतीय पारंपरिक चिकित्सा पद्धति और यूनानी चिकित्सा पद्धति में अश्वगंधा का जिक्र मिलता है। इसका उपयोग जड़ी-बूटी और सप्लीमेंट के तौर पर किया जाता रहा है।

 उपयुक्त मिट्टी

अश्वगंधा की खेती के लिए बलुई दोमट और लाल मिट्टी काफी उपयुक्त होती है। अश्वगंधा की खेती के लिए मिट्टी का पीएच मान 7.5 से 8 के बीच होना चाहिए। मिट्टी का पीएच मान पता करने के लिए मिट्टी की जांच नजदीकी कृषि विभाग कार्यालय से संपर्क करते हुए करवा सकते हैं। उपजाऊ और अर्ध उपजाऊ भूमि पर भी इसकी खेती सफलतापूर्वक की जा रही है।

मिट्टी की तैयारी

मिट्टी की तैयारी के लिए सबसे पहले खेत की दो बार जुताई करवाएं। जुताई के बाद खेत में जैविक खाद डाल कर पाटा लगा कर समतल कर दें।

पैदावार

अश्वगंधा की खेती में 5 से 6 महीने का समय लगता है। बीज के रूप में हम जितनी लागत लगाते हैं, उससे तीन गुना तक की पैदावार हो जाती है। प्रति हेक्टेयर 3 से 4 क्विंटल जड़ का उत्पादन होता है, जिससे 50 किलोग्राम तक बीज का उत्पादन हो जाता है। 10 से 12 किलोग्राम बीज की लागत के बाद 50 किलोग्राम तक की पैदावार की जा सकती है।