

नई दिल्ली। छत्तीसगढ़ के किसान अब अब खेती में कई बदलाव लाए है। अब धान वे परंपरागत फसलों को छोड़कर अब ऐसी फसलों की ओर बढ़ रहे हैं जो कम खर्च में ज्यादा मुनाफा दें रहे है। इन्हीं में से एक है ‘पचौली’, जो अपनी तेज सुगंध और औषधीय गुणों के कारण चर्चा में है। इस पौधे से निकलने वाला तेल दवाओं, इत्र और कॉस्मेटिक प्रोडक्टूस में काम आता है। खास बात ये है कि इसकी खेती में ज्यादा मेहनत या महगें रसायनों की जरूरत नहीं होती है। छत्तीसगढ़ औषधि पादप बोर्ड भी किसानों को इस दिशा में प्रोत्साहित कर रहा है ताकि राज्य हर्बल खेती का केंद्र बन सके।
रोपाई का सही समय
पचौली की खेती करने के लिए अगस्त से अक्टूबर का समय सबसे उपयुक्त माना जाता है। ये पौधा गर्म और नम जलवायु में तेजी से विकसित होता है। एक एकड़ भूमि में करीब 12 हजार पौधों की जरूरत होती है। अच्छी मिट्टी और नियमित नमी इसकी वृद्धि के लिए जरूरी है, जबकि देखभाल के मामले में ये अन्य फसलों की तुलना में आसान है।
3 से 4 साल तक देता है निरंतर उत्पादन
इस पौधे की एक बड़ी खूबी ये है कि ये लगातार 3 से 4 वर्षों तक उत्पादन देता रहता है। हर 4 से 5 महीने में इसकी कटाई की जा सकती है। यानी किसान साल में कई बार इससे आय अर्जित कर सकते हैं। इसकी पत्तियों से निकाला गया तेल बाजार में बेहद कीमती माना जाता है।
खेती में कम लागत
एक एकड़ पचौली की खेती में कुल लागत करीब 50 हजार रुपये आती है, जिसमें पौध, श्रम, खाद और सिंचाई शामिल हैं। खास बात ये है कि इसमें ज्यादा रासायनिक खाद या कीटनाशकों की जरूरत नहीं होती, जिससे ये ऑर्गेनिक खेती के अनुकूल है। यही वजह है कि पर्यावरण प्रेमी किसान भी इसकी ओर आकर्षित हो रहे हैं।
पचौली तेल की खासियत
पचौली के पत्तों से भाप आसवन विधि के जरिए तेल निकाला जाता है। इस तेल का उपयोग अरोमा थेरेपी, दवा निर्माण, परफ्यूम और कॉस्मेटिक उद्योग में होता है। इसकी प्राकृतिक सुगंध लंबे समय तक टिकी रहती है, जो इसे महंगे ब्रांड्स का पसंदीदा बनाती है।