
नई दिल्ली।राजस्थान के बीकानेर जिले की लूनकरणसर तहसील के छोटे से गांव फुलदेशर के युवा किसान मुकेश गर्वा की यह कहानी हजारों किसानों के लिए एक प्रेरणासे कम नहीं है।मुकेश, शिक्षित हैं- उन्होंने बीएससी और बीएड की पढ़ाई पूरी की, लेकिन बचपन से ही खेती से जुड़ाव रहा। वे पारंपरिक तौर पर मूंगफली और सरसों की खेती करते थे। पारंपरिक खेती में लागत अधिक और आमदनी बहुत कम थी। उन्होंने कृषि विभाग द्वारा आयोजित प्रशिक्षण शिविरों में भाग लेना शुरू किया, जहां उन्हें आधुनिक कृषि तकनीकों के बारे में जानकारी मिली। उन्होंने महसूस किया कि यदि सही तकनीक और योजनाबद्ध तरीके से खेती की जाए, तो कम भूमि में भी अधिक उत्पादन और आमदनी संभव है।
संरक्षित खेती पॉलीहाउस की ओर कदम
मुकेश ने कृषि विभाग के सहयोग से 4000 वर्ग मीटर के 3 पॉलीहाउस लगाए। पॉलीहाउस संरचना के अंदर उन्होंने खीरे की खेती की शुरुआत की। पॉलीहाउस की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें मौसम के प्रभाव को नियंत्रित किया जा सकता है, जिससे बेमौसमी फसलें भी उगाई जा सकती हैं।
सब्जी उत्पादन और बेमौसमी खेती
संरक्षित खेती के साथ-साथ उन्होंने बेमौसमी सब्जियों की खेती भी शुरू की, जैसे टिण्डा, तोरई और काकड़ी। ये फसलें आमतौर पर सीमित मौसम में उगाई जाती हैं, लेकिन पॉलीहाउस और ड्रिप सिंचाई तकनीक के माध्यम से उन्होंने पूरे वर्ष में इनका उत्पादन करना संभव बना लिया।
पॉलीहाउस खेती का प्रभाव
मुकेश गर्वा की मेहनत और तकनीकी समझ ने उनकी किस्मत ही नहीं, पूरे गांव और आसपास के युवाओं की सोच को भी बदल दिया। आज वे सालाना 30 से 40 लाख रुपये तक की आय प्राप्त कर रहे हैं।उनके तीन पॉलीहाउस से सालाना 2400 क्विंटल उत्पादन होता है, जिसकी बाजार में औसत कीमत 2500 रुपये प्रति क्विंटल है।