
नई दिल्ली।फरवरी-मार्च के महीनों में आम के पेड़ों पर बौर खिलना शुरू हो जाता है। आम के पेड़ों पर बौर आने से पूर्व दिसंबर महीने में बाग में जलवायु, पोषण, सिंचाई, कटाई छंटाई और कीट एवं रोग प्रबंधन कर दिया जाए तो गर्मियों में यह अच्छी और गुणवत्तापरक पैदावार देता है। कृषि विज्ञान केंद्र के उद्यानिकी वैज्ञानिक डॉ अंकित सिंह भदौरिया के अनुसार दिसंबर के महीने में आम के बागों में सिंचाई नहीं करनी चाहिए। यदि मिट्टी में नमी कम है तो पेड़ से दूर मिट्टी में पानी दें।
खाद का रखे ध्यान
नाइट्रोजन का प्रयोग न करें क्योंकि नाइट्रोजन से नई पत्तियों का विकास होता है, जिससे पुष्पन में बाधा आती है। इसके अतिरिक्त पेड़ों से सुखी एवं रोगग्रस्त टहनियों को काटकर अलग कर देना चाहिए। कटाई-छंटाई से वायु का संचार बेहतर होता है। पेड़ों के चारों तरफ मल्च डालें जिससे तापमान नियंत्रित रहे। साथ ही जैविक खाद अथवा वर्मी कंपोस्ट से मिट्टी की उर्वरता बढ़ाएं। बागों में हल्की जुताई करने से हानिकारक कीट और खरपतवार नष्ट हो जाते हैं। ठंड से बचाव हेतु बाग के चारों तरफ धुआं तथा कड़ाके की सर्दी और पाले से बचाव के लिए हल्की सिंचाई करना चाहिए।
कीटनाशक का करें प्रयोग
कहीं कहीं आम के पेड़ों पर टहनियां सूख जाती हैं। यह डाई बैक रोग होता है। ऐसी स्थिति में सूखी टहनी से 5 से 10 सेमी आगे हरी टहनी तक काटकर अलग कर देना चाहिए। साथ ही उसी दिन 3 ग्राम प्रति लीटर कॉपर ऑक्सीक्लोराइड का छिड़काव कर पुनः 10 से 15 दिन बाद छिड़काव दोहराएं। इसके अलावा गमोसिस की रोकथाम के लिए पेड़ की उम्र अनुसार तने पर 200 से 400 ग्राम कॉपर सल्फेट लगाना चाहिए। साथ ही पाउडरी मिल्ड्यू की रोकथाम हेतु घुलनशील सल्फर आधारित 2 ग्राम प्रति लीटर फंफूद नाशक तथा एंथ्राक्नोज रोग की रोकथाम हेतु 3.0 ग्राम प्रति लीटर कॉपर ऑक्सीक्लोराइड का प्रयोग करें।