हिमाचल में सूखे का असर, बागवानी फसलों को बचाने के लिए किसानों को विशेषज्ञों की खास सलाह

    23-Dec-2025
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नई दिल्ली।सर्दियों की बारिश की कमी के कारण मौजूदा सूखे जैसी स्थिति, खासकर बारिश पर निर्भर इलाकों में, हिमाचल प्रदेश के पहाड़ी क्षेत्रों में बागवानी फसलों को गंभीर रूप से प्रभावित कर रही है। डॉ. यशवंत सिंह परमार औद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय, नौणी के विशेषज्ञों ने हिमाचल प्रदेश के किसानों के लिए सूखे के तनाव से निपटने के लिए कुछ उपाय सुझाए हैं। हिमाचल प्रदेश में वर्षा का पैटर्न अनियमित रहा है, जिसमें मध्यम से लेकर असमान वितरण देखा गया है. परंपरागत रूप से अक्टूबर से दिसंबर शुष्क महीने होते हैं और मौसम विश्लेषणों (1980–2024) से यह स्पष्ट हुआ है कि नवंबर माह में लगभग 68.2 प्रतिशत  सामान्य से कम बारिश होती है। इस साल अंतिम बारिश 9 अक्टूबर, 2025 को हुई थी, जिसके बाद पूरे राज्य में लगभग 70 दिनों का लंबा शुष्क काल बना हुआ है। इस लंबे सूखे के कारण फलों के बागों सहित सभी फसलों में जल-अभाव की स्थिति पैदा हो गई है।

पौधों को प्रभावित करती है मिट्टी की नमी

मध्य पहाड़ी क्षेत्रों के उप-आर्द्र क्षेत्रों में 30–50 प्रतिशत तक मिट्टी की नमी वाष्पीकरण के माध्यम से नष्ट हो जाती है, जो वर्तमान परिस्थितियों में औरअधिक बढ़ सकती है। इन तीन महीनों के दौरान सूखे की स्थिति राज्य में सामान्य होती जा रही है, जहां लगभग 70 प्रतिशत क्षेत्र बारिश पर निर्भर है।ऐसे में जल-अभाव के प्रबंधन में नमी संरक्षण के लिए अलग-अलग कृषि पद्धतियों को अपनाना बहुत जरूरी हो गया है।

सेब, आड़ू, प्लम, खुबानी, जापानी फल के पौधों का नया रोपण अभी तक नहीं

सेब, आड़ू, प्लम, खुबानी, जापानी फल, अखरोट और कीवी जैसे फलों के पौधों का नया रोपण यदि अभी तक नहीं किया गया है तो कुछ समय के लिए टालने की सलाह दी गई है। यदि रोपण पूरा हो चुका है तो जीवन रक्षक सिंचाई जरूर करें, ड्रिप सिंचाई तकनीक के साथ मल्चिंग अपनाएं। इसके अंतर्गत पौधों के बेसिन क्षेत्र को सूखी घास या फसल अवशेषों से ढकना शामिल है, जिससे लंबे समय तक नमी बनी रहती है।