
नई दिल्ली।आगरा जिले के बीहड़ के खेत में थाईलैंड के अमरूद की बागवानी से मुकुंदीपुरा गांव के युवक हरिओम चक की किस्मत चमक उठी है। अब वह आम्रपाली और दशहरी आम का बाग लगा रहे हैं। शुरूआत 12 पौधों से की है। कहा कि परिणाम अच्छे रहे तो बागवानी को विस्तार देंगे। युवक की अच्छी कमाई से चंबल के गांवों के किसान भी बागवानी के लिए प्रेरित हो रहे हैं।
अमरूद की फसल से बेहतर कमाई
आरबीएस कॉलेज बिचपुरी से कृषि परास्नातक मुकुंदीपुरा के 24 वर्षीय हरिओम चक 8 साल पहले रायपुर के रहने वाले अपने दोस्त अनिल के यहां गए थे। दोस्त के बगीचे में थाईलैंड के अमरूद के पेड़ देखे। अमरूद के उत्पाद से वह प्रभावित हुए। हरिओम चक ने बताया कि प्रयोग के तौर पर अपने खेत में थाईलैंड के अमरूद के 100 पौधे रोपे थे। पौधे पेड़ बने, उन पर 1.750 किग्रा तक के अमरूद लगे। प्रति पौधे से 150 किग्रा तक अमरूद मिले। हरिओम ने बताया कि साल में दो बार मार्च-जुलाई, अक्तूबर-दिसंबर में आने वाली अमरूद की फसल से अच्छी कमाई हो रही है। थाईलैंड के अमरूद में दाने कम और मुलायम होते हैं। यही वजह है कि बुजुर्गो को ये अमरूद बेहद पसंद हैं। उन्होंने बताया कि उन्हें देखकर चंबल के कई गांवों के किसान भी बागवानी अपना रहे हैं।
क्या है थाईलैंड अमरूद की किस्म
थाईलैंड से आई अमरूद की एक लोकप्रिय किस्म है, जो अपने बड़े आकार गुलाबी गूदे, कम बीज और अधिक मिठास के लिए जानी जाती है, जो इसे शुगर के रोगियों के लिए भी अच्छा विकल्प बनाती है और इसकी खेती गमलों में भी संभव है, लेकिन कीटों और फलों के फटने से बचाने के लिए 'फ्रूट बैगिंग' (फल को थैली से ढकना) ज़रूरी है।