मैदानी भाग में कर सकते हैं पहाड़ों वाली स्ट्रॉबेरी की खेती, बस इन बातों का रखें ध्यान

    06-Dec-2025
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नई दिल्ली। तकनीक के इस दौर में स्ट्रॉबेरी की खेती अब सिर्फ पहाड़ी इलाकों तक सीमित नहीं रह गई है। आधुनिक तकनीक, मल्चिंग और सही सिंचाई पद्धति अपनाने से मैदानी इलाकों में भी स्ट्रॉबेरी की भरपूर पैदावार ली जा सकती है। यह एक जल्दी फल देने वाली और कम जगह में उगाई जाने वाली उच्च मूल्य वाली फसल है। यदि किसान कुछ महत्वपूर्ण बातों पर ध्यान दें जैसे मौसम, मिट्टी की तैयारी, गुणवत्तापूर्ण पौध चयन, मल्चिंग, सिंचाई और रोग नियंत्रण तो स्ट्रॉबेरी की खेती बेहद लाभकारी साबित हो सकती है।

क्या कहते है बागवान

उत्तर प्रदेश के गोंडा के एक प्रगतिशील किसान प्रवीण कुमार सिंह ने पत्रकारों से बात करते हुए कहा कि जिले में व्यावसायिक स्तर पर स्ट्रॉबेरी की खेती की शुरुआत सबसे पहले उन्होंने ही की थी और वे पिछले चार वर्षों से इसकी सफल खेती कर रहे हैं। स्ट्रॉबेरी की खेती करने वाला किसान रोज अपने खेत की निगरानी करे, क्योंकि पौधे बेहद नाजुक होते हैं। नियमित निरीक्षण से यह पता चल जाता है कि किस पौधे में रोग का प्रारंभिक असर दिखाई दे रहा है।

मल्चिंग का सबसे बड़ा फायदा

स्ट्रॉबेरी की खेती करने वाले बागवान प्रवीण कुमार बताते है कि स्ट्रॉबेरी की खेती का पूरा आधार मल्चिंग पर टिका होता है। इसके लिए पहले उठे हुए बेड तैयार किए जाते हैं और उन पर प्लास्टिक मल्च बिछाया जाता है। इससे स्ट्रॉबेरी के फल मिट्टी से सीधे संपर्क में नहीं आते। चूंकि स्ट्रॉबेरी के फल बेहद कोमल होते हैं।इसलिए मिट्टी में गिरते ही वे खराब होने लगते हैं और सड़ जाते हैं और बाजार योग्य नहीं रहते। मल्चिंग फल को खराब होने से बचाती है।

कैसे करें खेत की तैयारी

स्ट्रॉबेरी की खेती से पहले खेत की गहरी जुताई और मिट्टी को भुरभुरा बनाना बेहद जरूरी है। मिट्टी तैयार न होने पर पौधे जल्दी कमजोर हो जाते हैं और फलन प्रभावित होता है। स्ट्रॉबेरी की खेती में पौधा ही उत्पादन की नींव है। यदि पौधे की क्वालिटी खराब होगी तो फलन भी कम मिलेगा।