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डॉ हेमलता मीना
बरगद:
बरगद का वानस्पतिक नाम “ficus benghalensis” है । यह गूलर प्रजाति का वृक्ष है जिसे बनयान के नाम से भी जानते हैं। इसे भारत मे “बड़” व “वट वृक्ष ” के नाम से भी जाना जाता है ।यह एक सदा बहार वृक्ष है जिसकी ऊंचाई 20 मीटर तक हो सकती हैं।
बरगद भारत मे धार्मिक, आध्यात्मिक एवं वैज्ञानिक दृष्टिकोण से एक महत्वपूर्ण वृक्ष है।
भारतीय संस्कृति में वट वृक्ष की जहाँ पूजा होती हैं वही इसमें आध्यात्मिक दृष्टिकोण से ब्रह्मा, विष्णु व महेश का वास भी माना जाता है। साथ ही आयुर्वेद में औषधीय महत्व की दृष्टि से भी यह वृक्ष वैज्ञानिक दृष्टिकोण से कम महत्ता नही रखता है।
“बड़” एक विशालकाय वृक्ष है जो देशभर में पाया जाता है। यह एक द्विबीजपत्रीय तथा सपुष्पक वृक्ष है। इसका तना सीधा और काफी कठोर होता है । शाखाओं से भी जड़े निकलती है और भूमि की तरफ हवा में लटकती हुई बढ़ते बढ़ते धरती में घुस जाती है और एक नया तना बनाती है। इसका फल छोटा, गोलाकार होता है। बरगद का बीज बहुत छोटा होता है परंतु पेड़ बहुत विशाल होता है । इसकी पत्तियां चौड़ी और लगभग अंडाकार जैसी होती है। शाखाओं से पत्तियों और कलियों को तोड़ने पर दूध जैसा पदार्थ निकलता है जिससे लेटेक्स कहा जाता है। वटवृक्ष भारत में 5 पवित्र वृक्षों में गिना जाता है। यह पांच वृक्ष है पीपल, आम, पाखड और गूलर तथा वटवृक्ष।
भारतीय मान्यताओं के अनुसार वट वृक्ष की छाल में विष्णु ,जड़ों में ब्रह्म और शाखाओं में शिव का वास होता है, इसलिए यह त्रिमूर्ति का प्रतीक भी माना जाता है। वट वृक्ष का जीवन बहुत लंबा होता है और इसी कारण वट वृक्ष नश्वरता का प्रतीक भी माना जाता है । जेष्ठ मास की अमावस्या को हिंदू महिलाएं पति की लंबी उम्र के लिए और कहीं-कहीं पर संतान प्राप्ति एवं उनकी लंबी आयु की कामना के लिए वट सावित्री की पूजा करती है। चूंकि भारतीय सांस्कृतिक परंपरा में वटवृक्ष को पवित्र माना जाता है यही कारण है कि इसे कोई काटता नहीं है। इसे काटना पाप समझा जाता है। वटवृक्ष की विशालता के कारण इसे अपने आप में एक छोटा पारिस्थितिकी तंत्र माना जाता है । कई हजार कीड़े मकोड़े इसमें रहते हैं जिनका यह न सिर्फ आश्रय स्थल होता है बल्कि उनके लिए भोजन का स्रोत भी होता है। इसी तरह बहुत सारे पशु पक्षी भी वट वृक्ष के ऊपर आश्रित होते हैं । तोता, मैना ,कौवे आदि पक्षी इसके फलों को खाते हैं और उसके बाद बीजों को अन्यत्र फैलाते में मदद भी करते हैं जो एक पारिस्थितिकी तंत्र के लिए आवश्यक है ।
वट वृक्ष के औषधीय प्रयोग भी हैं इसमें कई बीमारियों को ठीक करने के लिए बहुत सारे तत्व मिलते हैं। चर्म रोग, मधुमेह ,हृदय रोग आदि को दूर करने के लिए इसका अंगों का महत्व कौन नही जानता। इसकी छाल का पाउडर मधुमेह रोगियों के लिए वरदान से कम नहीं है वहीं इसके पत्तों को तेल में लपेटकर गुनगुना करने से त्वचा संक्रमण पर लगाने से आराम मिलता है ।
यह एक पवित्र वृक्ष है जिसके विभिन्न उपयोग हैं। कमाल की बात है कि बहुत कम देखरेख मैं पलने बढ़ने वाले इस वृक्ष को हम हमारे वृक्षारोपण अभियानों में शामिल नहीं कर रहे हैं। धरती पर वृक्षों की कमी होती जा रही है ऐसे में वट वृक्ष को बड़े पैमाने पर लगाया जाए तो निश्चित ही पर्यावरण संकट को काफी हद तक हम काबू रखने में कामयाब हो सकते है। यह एक सदाबहार वृक्ष है जो दूर दूर तक फैल कर छाया ही नहीं फैलाता बल्कि पशु पक्षियों के लिए आश्रय स्थल का काम भी करता है। इसके पत्ते जानवरों को खिलाए जाते हैं और सूखे पत्तों से पत्तल और दोने भी बनाए जाते हैं ।यदि इसके पत्तों से दोने बनाने को अधिक प्रोत्साहन दिया जाए तो प्लास्टिक का उपयोग कम किया जा सकता है ।
सबसे बड़ा बरगद का वृक्ष कोलकाता के बॉटनिकल गार्डन में है जो कहते हैं कि दुनिया का सबसे चौड़ा बरगद का पेड़ है और यह 144400 वर्ग मीटर में फैला हुआ है ।दुनिया के इस सबसे बडे बरगद के पेड़ को सन 1787 में स्थापित किया गया था । इसकी ऊंचाई करीब 24 मीटर है। सरकार ने सन 1987 में इस विशाल बरगद के वृक्ष के सम्मान में डाक टिकट भी जारी किया था। और इसे बॉटनिकल सर्वे ऑफ इंडिया का प्रतीक चिन्ह भी माना जाता है। इसे दूर से खड़े होकर देखने पर यह वटवृक्ष एक जंगल की तरह नजर आता है ।इसकी शाखाएं पानी की तलाश में जमीन के नीचे चली गई है और 2800 से अधिक शाखाएं जड़ का रूप ले चुकी है ।कई चक्रवाती तूफानों में इसकी जड़ों को काफी नुकसान पहुंचा है लेकिन फिर भी यह अपनी जड़े जमा कर मजबूती से खड़ा है। उत्तर भारत में बरगद के पेड़ का काफी महत्व है यहाँ इस पेड़ की पूजा तो की ही जाती है साथ में इसके औषधीय महत्व से भी लोग परिचित हैं। आयुर्वेद जाने वालों को पता है कि इसके फल में प्राकृतिक खनिज होते हैं जो ब्लड प्रेशर और ह्रदय रोगों में लाभदायक होते हैं |
बरगद के पेड़ को ऑक्सीजन की फैक्ट्री कहा जाता है क्योंकि यह दिन रात ऑक्सीजन देता है। एक अनुमान के अनुसार 100 वर्ष पुराना बरगद का पेड़ 1 दिन में 200 से 300 लीटर ऑक्सीजन दे देता है जबकि एक नया बरगद का वृक्ष भी 100 लीटर से कम ऑक्सीजन नहीं देता है। बरगद के पेड़ की हर पत्ती ऑक्सीजन बनाती है। इसका अर्थ यह भी है कि बरगद के पेड़ में जितनी पत्तियां होती है उतनी ही अधिक ऑक्सीजन आबोहवा में मिलती है ।
कोरोना काल में ऑक्सीजन के महत्व को हमने अच्छे से समझा हैं ।
शहरों में बरगद के पेड़ अब कम होते जा रहे हैं लेकिन गांव में आज भी बरगद के पेड़ काफी है। अक्सर गांव की चौपाल बरगद के पेड़ के नीचे ही होती है ।वहां पशु-पक्षी भी बैठकर आनंद लेते हैं उसका फल खाते हैं और चौपाल के नीचे बैठकर गांव के पंच बड़े बड़े निर्णय लेते हैं। भीषण गर्मी में बरगद का पेड़ आसपास के वातावरण को ठंडक पहुंचाता है और लोगों को गर्मी से बचाता है।
बरगद का पेड़ पारिस्थितिकी संतुलन बनाए रखने में काफी महत्वपूर्ण होता है। इस प्रकार हम देखते है कि इसका धार्मिक, आध्यात्मिक और वैज्ञानिक दृष्टि से काफी महत्व है।
पीपल:
पीपल वृक्ष का वानस्पतिक नाम “ficus religiosa” है। पीपल के पेड़ के ऐतिहासिक साक्ष्य बहुत प्राचीन है । सिंधु घाटी की खुदाई से प्राप्त मोहनजोदड़ो की एक मुद्रा में पीपल वासी देवता पत्तियों से घिरे हुए हैं। इस मुद्रा में 5 मानव आकृतियां हैं। मोहनजोदड़ो की एक मुद्रा में पीपल की पत्तियों के भीतर देवता है। हड़प्पा कालीन सिक्कों पर भी पीपल वृक्ष की आकृतियां देखने को मिलती है ।हड़प्पा सभ्यता में पीपल की छाया है और पीपल देवता है ।
अश्वत्थ पीपल वृक्ष का संस्कृत नाम है।प्राचीन हिन्दू धर्म ग्रंथों में पीपल का उल्लेख मिलता है। ऋग्वेद में इसे पीपल ही कहा गया है।
पीपल एक विशालकाय वृक्ष है। पीपल के तने का आकार 3 मीटर तक हो सकता है और पीपल की ऊंचाई 30 मीटर तक हो सकती है इसकी आयु 900 से 1500 वर्ष तक हो सकती है।
पीपल वृक्ष को भारत की संस्कृति में महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है। पीपल को भारत में पूजनीय वृक्ष माना गया है। पीपल भारत के अलावा नेपाल ,श्रीलंका, इंडोनेशिया,इराक, चीन,पाकिस्तान, बांग्लादेश, बर्मा, भूटान, आदि देशों में भी पाया जाता है। बरगद की तरह पीपल भी दीर्घायु वृक्ष है। पीपल गूलर की प्रजाति का पेड़ है। इसके फल बरगद की तरह ही बीजों से भरे तथा आकार में काफी छोटे होते हैं।इसके बीज भी आकार में बहुत छोटे होते हैं परंतु इससे उत्पन्न वृक्ष बहुत विशाल होता है ।पीपल का वृक्ष बरगद से थोड़ा छोटा होता है। परंतु इसके पत्ते सुंदर, कोमल और चंचल होते हैं। पीपल के पत्तों को जानवर चाव से खाते हैं और हाथी को पीपल के पत्ते बहुत पसंद है। स्वास्थ्य के लिए पीपल बहुत ही महत्वपूर्ण वृक्ष है यह वृक्ष भी 24 घंटे ऑक्सीजन छोड़ता है | कई आयुर्वेद की औषधियों में पीपल का उपयोग किया जाता है।इसकी छाल,कोंपले,पत्ते,लकड़ी ,फल व लेटेक्स सब औषधि के रूप में उपयोग किये जाते है। पीलिया, रतौंधी, मलेरिया, खांसी ,दमा ,सर्दी ,सर दर्द,मधुमेह आदि रोगों में इससे बनी औषधि काम में ली जाती हैं।
भारत मे पीपल पूर्णिमा का धार्मिक महत्व है ।पीपल पूर्णिमा वैशाख पूर्णिमा को ही आती है जिसे बुद्धपूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन को बड़ा शुभ माना गया है ।इस दिन गंगा में स्नान करके लोग दान पुण्य करते हैं और व्रत रखते हैं। शास्त्रों में लिखा है कि पीपल पूर्णिमा के दिन सुबह-सुबह पीपल के वृक्ष पर मां लक्ष्मी का आगमन होता है और जो इस दिन पीपल की पूजा करता है उनके घर में धन लक्ष्मी पर समृद्धि बनी रहती है ।
हिंदू, बौद्ध और जैन तीनों धर्मों में पीपल वृक्ष का धार्मिक हैं भगवद गीता में भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि वृक्षों में मै पीपल का वृक्ष हूं: “अश्वत्थः सर्ववृक्षाणां … ॥ अर्थात: मैं सब वृक्षों में पीपल का वृक्ष, … हूँ॥ 10.26॥” हिंदू साधू और योगी आज भी पीपल के पेड़ के नीचे ध्यान लगाते हैं और हिंदू पीपल के पेड़ की प्रदक्षिणा करते हैं। इसके अलावा वामन पुराण के अनुसार सरस्वती नदी का उद्भव पीपल के पेड़ से हुआ है । ऋग्वेद के सूत्रों में भी ऐसा ही उल्लेख है।
बौद्ध धर्म में भी पीपल का पवित्र धार्मिक महत्व है भगवान बुद्ध को ज्ञान प्राप्ति बोधि वृक्ष के नीचे ही हुई थी। बोधगया में आज भी इस पेड़ के अवशेष देखे जा सकते हैं |