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शिमला: हिमाचल प्रदेश के बागवानी करने वाले किसान फास्फोरस का अंधाधुंध इस्तेमाल अपने बगीचों में कर रहे हैं, इस कारण मिट्टी का संतुलन बुरी तरह से प्रभावित हो रहा है। हॉर्टिकल्चर फसलों पर इसका नेगेटिव असर पड़ रहा है। बागवानी और कृषि विभाग के द्वारा मृदा परीक्षण में यह पाया गया है कि फास्फोरस की मात्रा मिट्टी में अधिक हो चुकी है, जिसका प्रभाव पौधों और मिट्टी दोनों पर पड़ रहा है।
फास्फोरस का सही इस्तेमाल न होने से सेब के पौधों की ग्रोथ, फूल और फल की गुणवत्ता पर असर पड़ सकता है। इसे ध्यान में रखते हुए उद्यान विभाग ने बागवानों के लिए एडवाइजरी जारी की है। इसमें बताया गया है कि फास्फोरस का इस्तेमाल कब और कैसे करना चाहिए।
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एडवाइजरी के मुताबिक, फास्फोरस को फ्लावरिंग से 90 दिन पहले यानी लगभग दिसंबर में प्रयोग करना चाहिए। इसे हर साल नहीं बल्कि वैकल्पिक वर्षों में डालना बेहतर होगा। पौधे के तने से एक फीट की दूरी पर गोल नाली बनाकर उसमें फास्फोरस डालें। यह तरीका फास्फोरस को पौधों की जड़ों तक पहुंचाने में मदद करता है।
अगर फास्फोरस को गलत तरीके से या तने के पास डाल दिया जाए तो यह जड़ों तक नहीं पहुंचता और पौधों को लाभ नहीं मिलता। इसके अलावा, मिट्टी में फास्फोरस का स्तर बढ़ने से अन्य सूक्ष्म पोषक तत्व जैसे जिंक और आयरन की कमी हो सकती है।
उद्यान विभाग ने बागवानों से कहा है कि वे समय-समय पर मिट्टी का परीक्षण ज़रूर कराएं। मिट्टी में यदि फास्फोरस की मात्रा पर्याप्त है तो इसके प्रयोग से बचें। क्योंकि फास्फोरस का अधिक और काम होना दोनों ही हानिकारक होता है। विशेषज्ञों का कहना है कि अच्छे रिजल्ट के लिए फास्फोरस का सही समय और सही तरीके से इस्तेमाल करना बहुत ज़रूरी है ताकि मिट्टी का संतुलन बना रहे।