
नई दिल्ली। हिमाचल प्रदेश के निचले हिस्से के बंजर और बेकार मानी जाने वाली जमीन अब हरा सोना उगलने लगी है। विशेष रूप से निचले हिमाचल के किसान और बागवान अब बारिश पर पूरी तरह निर्भर नहीं हैं। जहां सिंचाई की सुविधा नहीं थी, वहां की भूमि पहले बंजर थी, लेकिन अब वही जमीन बागवानों की आर्थिकी को सुदृढ़ कर रही है।नई बागवानी से तैयार फसल सीधे बाजार में बिक रही है, जिससे किसानों को बेहतर दाम मिल रहे हैं। पहले बंजर मानी जाने वाली भूमि अब बेशकीमती बन चुकी है और हमारे लिए स्थायी आय का स्रोत बन गई है। शिवा परियोजना के तहत प्रदेश में बागवानी को नई पहचान मिली है और किसानों की आय बढ़ाने में यह अहम भूमिका निभा रही है।
2028 तक 60 लाख फलदार पौधे लगाने का लक्ष्य
2024 में शिवा परियोजना शुरू हुई इस परियोजना का लक्ष्य 2028 तक 60 लाख फलदार पौधे लगाना है। अब तक 25 लाख पौधे रोपित हो चुके हैं और यह संख्या लगातार बढ़ रही है। परियोजना के तहत बिलासपुर, हमीरपुर, मंडी, कांगड़ा, सोलन, सिरमौर और ऊना के 28 ब्लॉकों में 6000 हेक्टेयर भूमि में से 2200 हेक्टेयर भूमि पर फलदार पौधे रोपित किए जा चुके हैं। मीठा संतरा, अरूमद, लीची, अनार, पिकानट, आम, जापानी फल और प्लम जैसे उच्च गुणवत्ता वाले पौधे किसानों की जमीन में नई जान डाल रहे हैं।
पहले बंजर भूमी था यह इलाका
हिमाचल प्रदेश का यह 80 प्रतिशत इलाका पहले बंजर भूमी था। वहां अब किसान स्थायी आय का स्रोत विकसित कर चुके हैं। किसानों को तकनीकी प्रशिक्षण और आधुनिक बागवानी पद्धतियों से लैस किया जा रहा है। विशेषज्ञ लगातार फसल की गुणवत्ता सुधारने, पौधों की वृद्धि और रोग-मुक्त उत्पादन के तरीकों पर मार्गदर्शन दे रहे हैं।