
नई दिल्ली। भारत में नीम को दवा का पेड़ कहा जाता है। गांव हो या शहर, घरों के आसपास लगाया गया नीम सिर्फ छाया ही नहीं देता बल्कि औषधीय और कृषि लाभ भी प्रदान करता है। आज जब किसान कम लागत वाली, टिकाऊ और सुरक्षित खेती की तलाश में हैं, ऐसे समय में नीम की खेती एक मजबूत विकल्प बनकर उभर रही है। यह न केवल कृषि सुधार में मदद करता है बल्कि आय के नए रास्ते भी खोलता है। इसकी खास बात यह है कि इसे बहुत कम देखभाल की जरूरत होती है और यह कठिन परिस्थितियों में भी शानदार ढंग से बढ़ता है।
नीम की बागवानी क्यों पहली पसंद?
पिछले कुछ वर्षों में किसानों में नीम की खेती की लोकप्रियता तेजी से बढ़ी है। कारण साफ हैकम लागत, लंबी उम्र, प्राकृतिक कीटनाशक और मजबूत मार्केट मांग। नीम का पेड़ 50 से 200 साल तक जीवित रह सकता है और एक बार लगाया गया पौधा आने वाले दशकों तक फायदा देता रहता है।
सिंचाई की जरूरत बहुत कम
नीम सूखा सहन करने वाले पौधों में शामिल है। शुरुआती एक वर्ष हल्की सिंचाई से बढ़िया ग्रोथ मिलती है, लेकिन बाद में पेड़ खुद को प्राकृतिक मौसम के अनुसार ढाल लेता है।
रोपाई का सही समय और पौध तैयार करना
नीम लगाने का सबसे अच्छा समय जुलाई से अगस्त, यानी मानसून का सीजन है। इस वक्त मिट्टी में नमी रहती है जिससे पौधा जल्दी पकड़ बनाता है. किसान नर्सरी से 1–1.5 फीट ऊंचे पौधे खरीदकर आसानी से खेत या मेड़ पर लगा सकते हैं।
नीम के पेड़ की देखभाल कैसे करें?
नीम की बागवानी में काम बहुत कम होता है। शुरुआती दो साल तक पौधे के आसपास से खरपतवार हटाते रहें। इसके अलावा गर्मियों में कभी-कभी पानी दें, जंगली जानवरों से सुरक्षा करें और तीसरे वर्ष से पौधा पूरी तरह मजबूत होकर खुद-ब-खुद बढ़ने लगता है।