
नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश के सिद्धार्थनगर जिले के इटवा ब्लॉक क्षेत्र के मुडिला शिवदत्त गांव में बुधवार को फसल अवशेष प्रबंधन पर ब्लॉक स्तरीय जागरूकता कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में आए कृषि वैज्ञानिकों ने किसानों को फसल अवशेष जलाने से होने वाले दुष्प्रभावों के बारे में जानकारी दी। साथ ही पौधरोपण के लिए प्रेरित किया। केंद्र के वैज्ञानिक डॉ. प्रदीप कुमार ने किसानों को बताया कि फसल अवशेष जलने से वायु प्रदूषण होता है। मृदा में उपस्थित सूक्ष्म जीव नष्ट हो जाते हैं। पोषक तत्व जल जाते हैं और सतह कठोर हो जाती है। मृदा रंध्र से ऑक्सीजन की मात्रा कम हो जाती है, भूमि की जल धारण क्षमता में कमी आ जाती है। वहीं, फसल अवशेष प्रबंधन करने से मृदा में कार्बनिक पदार्थ की मात्रा बढ़ती है। मृदा में सूक्ष्म जीवों की संख्या में वृद्धि होती है। मिट्टी की जल धारण क्षमता बढ़ती है।
फसल अवशेष सड़ाना फायदेमंद
वैज्ञानिक डॉ. प्रवेश कुमार ने बताया कि फसल अवशेष को खेत में ही सड़ाने से मृदा में कार्बनिक पदार्थ की मात्रा में वृद्धि व मिट्टी का तापमान नियंत्रित रहता है। फसल के बीजों के जमाव के लिए अनुकूल परिस्थितियां मिलने से अंकुरण अधिक होने से पौधों की संख्या अधिक रहती है और उत्पादन भी अधिक होता है।
फसल उत्पादन में मिलती है मदद
फसल अवशेष पर यूरिया का छिड़काव करके या फसल अवशेष को इकट्ठा करके डीकंपोजर के प्रयोग से अवशेष को आसानी से सड़ाकर खेत में प्रयोग करके मिट्टी की भौतिक एवं रासायनिक दशा में सुधार के साथ-साथ और ऑर्गेनिक तरीके से फसल के उत्पादन में मदद मिलती है।