
नई दिल्ली।।उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में माल्टा उत्पादक किसान सरकारी अनदेखी और बाजार की कड़ी प्रतिस्पर्धा के कारण बड़े संकट से जूझ रहे हैं। माल्टा पेड़ों से गिरकर सड़ रहा है, क्योंकि किसानों को उनके उत्पाद का उचित मूल्य नहीं मिल रहा है। उनकी निराशा का आलम यह है कि वे व्यापारियों को 650 रुपये प्रति बोरी (लगभग 250 फल) की दर पर बेचने को मजबूर हैं, क्योंकि कोई अन्य खरीदार नहीं है।
बागवानों को नहीं मिलता है दाम
किसानों की इस हताशा का मुख्य कारण न्यूनतम समर्थन मूल्य की अनुपस्थिति है। नींबू वर्गीय फलों का उत्पादन मुख्य रूप से अल्मोड़ा, पिथौरागढ़, पौड़ी, चमोली और रुद्रप्रयाग जिलों में होता है। दशकों पहले तिलवाड़ा में प्रोसेसिंग यूनिट स्थापित करने या कलेक्शन सेंटर पर 7 से 9 रुपये प्रति किलो का समर्थन मूल्य देने जैसे सरकारी वादे आज तक जमीन पर नहीं उतर पाए हैं। भले ही पिछले वर्ष माल्टा को जीआई टैग मिला हो और पीएम एफएमई योजना के तहत प्रोसेसिंग यूनिटों को सब्सिडी दी जा रही हो, लेकिन इस वर्ष राज्य सरकार द्वारा माल्टा का एमएसपी निर्धारित न करने से प्रयास अप्रभावी साबित हो रहे हैं।
बाजार में पिछड़ रहे है उत्तराखंड के मालटा
बाजार में उत्तराखंड के माल्टा को आयातित किन्नू और संतरे से कड़ी प्रतिस्पर्धा मिल रही है। जहां मीठे, रसीले और कम बीज वाले किन्नू 80 से 100 रुपये प्रति किलो तक बिक रहे हैं। वहीं उत्तराखंड का माल्टा प्रायः छोटे आकार और अधिक बीज के कारण आधुनिक बाजार में पिछड़ रहा है। पर्वतीय कृषक बागवान उद्यम संगठन रुद्रप्रयाग के जिलाध्यक्ष सतीश भट्ट व जगबीर सिंह गुसाईं के अनुसार बंदरों और चिड़ियों से फसल की रक्षा करने के बावजूद उचित मूल्य न मिलने से माल्टा उत्पादन से विमुख हो रहे हैं।