सेब की सेहत के लिए बागवान मिट्टी के पीएच की जरूर करवाएं जांच

13 Dec 2025 10:56:32


नई दिल्ली।हिमाचल प्रदेश में बागवानी नित नए सुधार और बढ़ोतरी की ओर बढ़ रही है। प्रदेश की आर्थिकी में बागवानी का अहम किरदार है। प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से हर वर्ष सेब का करीब पांच हजार करोड़ रुपये का कारोबार प्रदेश में होता है। सेब की आधुनिक किस्मों से भी बागवानों को लाभ पहुंच रहा है, लेकिन बागवानों की ओर से बगीचों में खाद डालने में बरती जा रही लापरवाही मिट्टी में फास्फोरस की मात्रा बढ़ा रही है। इससे सेब की गुणवत्ता और उत्पादन प्रभावित हो रहा है। मिट्टी में जरूरत से ज्यादा बढ़ रहा फास्फोरस सेब के पेड़ों के लिए भी नुकसानदायक है। देखा-देखी में बागवान बगीचों में खाद तो डालते हैं, लेकिन मिट्टी को किस तत्व की जरूरत है, इससे बागवान अभी भी अनभिज्ञ हैं।

बागवान इन दिनों खुश्क मौसम के चलते परेशान

बागवान इन दिनों खुश्क मौसम के चलते परेशान हैं। बारिश न होने के कारण सेब बगीचों के प्रबंधन कार्य लटके हुए हैं। वर्तमान में सेब उत्पादन में भी वैज्ञानिक तकनीकों को अपनाना जरूरी हो गया है। अभी भी सूबे के अधिकांश बागवान सेब प्रबंधन की वैज्ञानिक तकनीकों को नहीं अपना रहे हैं। इस कारण फल उत्पादन और सेब के पेड़ों में बीमारियों का खतरा बना हुआ है। सबसे बड़ी समस्या अभी भी मिट्टी से जुड़ी हुई है। बागवानी विभाग की मानें, तो सेब उत्पादन के लिए सबसे पहले मिट्टी की जांच करना जरूरी है। पीएच यानि मिट्टी की अम्लीयता और क्षारीयता को मापना बहुत जरूरी हैजिससे उसे दी जाने वाली खाद और पोषक तत्वों का निर्धारण किया जा सकता है। इसी आधार पर पौधों के पोषक तत्वों की उपलब्धता और वृद्धि में सुधार संभव है।

सेब उत्पादन के लिए मिट्टी का पीएच 6.5 से 6.8

 बेहतर और उच्च गुणवत्ता युक्त सेब उत्पादन के लिए मिट्टी का पीएच 6.5 से 6.8 होना सबसे उत्तम माना जाता है। अब जब मिट्टी के पोषक तत्वों की यदि बागवानों को जानकारी न हो, तो वे बेहतर फसल कैसे पा सकेंगे। मिट्टी परीक्षण से सेब के पेड़ों को होने वाले नुकसान और बीमारियों का पता लगाया जा सकता है।विभिन्न क्षेत्रों में सेब बागवान अधिकांश रूट रॉट, कैंकर और एप्पल मोजेक वायरस की समस्या से जूझ रहे हैं। इन बीमारियों से निजात पाने के लिए भी वैज्ञानिक पद्धति से पेड़ों का प्रबंधन जरूरी है।


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