उच्च घनत्व की सेब बागवानी के लिए सूखा बना चुनौती

26 Dec 2025 10:56:23

नई दिल्ली।हिमाचल प्रदेश के शिमला जिलें में रोहड़ू में बदलती जलवायु से उच्च घनत्व वाले क्षेत्र में सेब की खेती के लिए गंभीर चुनौती खड़ी हो रही है। मौसम का यही हाल रहा, तो बागवानों के लिए सिंचाई तो दूर पीने के पानी का संकट सामने खड़ा हो जाएगा। पारंपरिक रॉयल किस्म के बगीचे पुराने होने पर बागवान उनको बदल कर तेजी से आधुनिक रूट स्टॉक पर आधारित सघन सेब की खेती अपना रहे हैं। यह पद्धति प्रारंभिक वर्षों में अधिक उत्पादन और बेहतर गुणवत्ता का भरोसा देती है, किंतु लगातार घटते हिमपात और बढ़ते सूखे ने इसकी खेती के लिए प्रश्नचिह्न खड़े कर दिए हैं। बागवानी विशेषज्ञों के अनुसार, पारंपरिक सेब बगीचों में प्रति हेक्टेयर लगभग 4 से 5 हजार घन मीटर जल की आवश्यकता होती है, जबकि सघन सेब की खेती में यह आवश्यकता बढ़कर 7 से 8 हजार घन मीटर तक पहुंच जाती है।

प्रति हेक्टेयर 800 से 1000 पौधे लगाए जाते हैं

एचडीपी प्रणाली में प्रति हेक्टेयर 800 से 1000 पौधे लगाए जाते हैं, जबकि पारंपरिक पद्धति में यह संख्या 250 से 300 के बीच रहती है। उथली जड़ प्रणाली और ड्रिप सिंचाई पर पूर्ण निर्भरता के कारण जल की निरंतर उपलब्धता इस खेती की अनिवार्य बन जाती है। पिछले दस वर्षों में सेब उत्पादक क्षेत्रों में औसत वार्षिक वर्षा में 15 से 20 प्रतिशत तक की कमी दर्ज की गई है। वहीं, बर्फबारी के दिनों में 30 से 40 प्रतिशत तक की गिरावट आई है। इसका सीधा प्रभाव प्राकृतिक जल स्रोतों पर पड़ा है। नाले, बावड़ियां और छोटे झरने या तो सूख चुके है या पानी नाम मात्र रह गया है। बागवान विदेशों की तर्ज पर सघन सेब की खेती की ओर अग्रसर तो हैं, लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि यूरोप और न्यूजीलैंड जैसे देशों की जलवायु हिमाचल से भिन्न है। यदि गर्मियों में सूखे की स्थिति बनी रही, तो सिंचाई की समस्या के साथ ही कई क्षेत्रों में पेयजल का भी गंभीर संकट उत्पन्न हो सकता है। बागवानी विशेषज्ञों का कहना है कि संघन सेब बागवानी के लिए ऐसी परिस्थिति में वर्षा जल संग्रहण, वर्षा जल संचयन और क्षेत्र के अनुसार अनुकूल किस्मों के चयन को प्राथमिकता देना समय की अनिवार्य आवश्यकता बन गई है।


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