
नई दिल्ली। भारत में हर साल धान की कटाई के बाद खेतों में जलती पराली जिस धुएं को हवा में फैलाती है, वही पराली किसानों की कमाई और ग्रामीण अर्थव्यवस्था की ताकत बन सकती है। आज भी उत्तर भारत की हवा पराली के धुएं से भारी हो जाती है, और दूसरी ओर लाखों टन सब्जियां व फल समय पर ठंडा भंडारण न मिलने के कारण खराब हो जाते हैं।अगर इसी पराली को बायोमास ऊर्जा के रूप में इस्तेमाल किया जाए तो गांवों के कोल्ड स्टोरेज चल सकते हैं, किसानों की आय बढ़ सकती है और प्रदूषण पर बड़ी चोट की जा सकती है। तो चलिए समझते हैं कि पराली कैसे संकट को अवसर में बदल सकती है।
खेत में बोझ, कोल्ड स्टोरेज के लिए खजाना
फसल कटाई के बाद किसानों के पास खेत खाली करने के लिए सीमित समय होता है। श्रम की कमी और महंगी मशीनरी के कारण पराली को खेत में मिलाना आसान नहीं होता। मजबूरन किसान उसे जला देते हैं. लेकिन यही पराली एक बड़े ईंधन स्रोत के रूप में काम आ सकती है।
गांवों में कोल्ड स्टोरेज की कमी
भारत में अधिकांश कोल्ड स्टोरेज शहरों के पास बने होने और महंगी बिजली लागत के कारण ग्रामों के छोटे किसान उनका उपयोग नहीं कर पाते। ऐसे में बायोमास आधारित कोल्ड स्टोरेज किसानों के लिए किफायती समाधान बन रहा है। 20 टन क्षमता वाला एक छोटा कोल्ड स्टोरेज लगभग 15 लाख रुपये में तैयार हो जाता है और सालाना खर्च करीब ढाई लाख रुपये आता है। इसमें ईंधन सबसे बड़ा खर्च होता है, जिसे किसान पराली से ही पूरा कर सकते हैं।
गांव-गांव में ऊर्जा का नया ढांचा
एफपीओ यानी किसान उत्पादक संगठन बायोमास आधारित कोल्ड स्टोरेज को गांवों में टिकाऊ बनाने की सबसे मजबूत कड़ी साबित हो सकते हैं। एफपीओ गांव-गांव से पराली एकत्र कर सुरक्षित रूप से उसका भंडारण कर सकते हैं। साथ ही मशीनों को चलाने के लिए किसानों को तकनीकी प्रशिक्षण भी दे सकते हैं। जरूरत पड़ने पर कोल्ड स्टोरेज को सामुदायिक मॉडल पर संचालित कर पूरे क्षेत्र के किसानों को लाभ पहुंचाया जा सकता है।