
कार्यशाला के मुख्य वक्ता डॉ. गोपीचंद गुप्ता ने बताया कि बच्चों में दमा के मामले 8 से 11 फीसदी तक पहुंच गए हैं। इसकी बड़ी वजहें हैं – वाहन और कारखानों से निकलता धुआं, कचरा जलाना और हवा में मौजूद परागकण। प्रदूषण के कारण बुज़ुर्गों के साथ भी सांस लेने जैसी परेशानी सामने आयी है।
डॉ. एसके शर्मा ने कहा कि लकड़ी और उपलों पर खाना बनाना, कार्यस्थलों पर हवा की निकासी की कमी भी दमा को बढ़ावा देती है। डॉ. एएस सचान ने लोगों से अपील की कि अगर सांस फूलने, खांसी, छींकें या सीने में जकड़न जैसी शिकायत हो, तो तुरंत दमा की जांच कराएं।
डॉ. वरुण चौधरी ने एलर्जिक अस्थमा के बारे में जानकारी दी और बताया कि प्रदूषित कण सांस की नलियों को संक्रमित कर देते हैं, जिससे सांस लेने में परेशानी होती है। अन्य विशेषज्ञों ने भी प्रदूषण से बचाव के उपाय बताए। कार्यशाला के संयोजक डॉ. प्रशांत प्रकाश ने सभी का आभार जताया।