
आज राणा महिपाल सिंह अपनी 30 बीघा जमीन पर तरबूज और टेटी की खेती कर रहे हैं। वह बताते हैं कि ये फसलें सिर्फ तीन महीने में तैयार हो जाती हैं और अगर मौसम साथ दे, तो एक बीघा में 70 से 80 हजार रुपये तक की आमदनी हो सकती है। इस साल उन्होंने 21 लाख रुपये का उत्पादन किया, जिसमें लागत सिर्फ 30 से 50 हजार रुपये प्रति बीघा के बीच रही। यानी तीन महीने में उन्होंने अच्छा मुनाफा कमाया।
सरकारी योजनाओं का भी उन्हें भरपूर लाभ मिला है। पानी की टंकियों के लिए 50,000 रुपये, ग्रो कवर के लिए 40,000 रुपये, प्लास्टिक मल्चिंग के लिए 50,000 रुपये, पैक हाउस के लिए 2 लाख रुपये और मसाला फसलों के लिए 50,000 रुपये की सहायता मिली। इसके अलावा मल्च बिछाने की मशीन के लिए 30,000 रुपये की मदद भी उन्हें मिली।
इसी गांव के एक अन्य किसान राणा महेंद्रसिंह ने भी अब पारंपरिक खेती छोड़कर टेटी और तरबूज की खेती शुरू की है। उद्यानिकी विभाग के सहायक निदेशक विजय कलारिया ने बताया कि “सब्जी और फल वाली फसलें कम समय में ज्यादा आमदनी देती हैं, जिससे किसानों की आर्थिक स्थिति में सुधार हो रहा है।