
इस बेर की सबसे खास बात यह है कि इसे कम पानी वाले क्षेत्रों में भी उगाया जा सकता है। यह फल तीन तरह की जलवायु में उगाया जा रहा है—गर्म (धौलाकुआं), मध्यम (नौणी) और ठंडा (मशोबरा)। ठंडे इलाकों में यह अन्य राज्यों की तुलना में दो महीने पहले तैयार हो सकता है, जिससे इसकी बाजार में मांग और कीमत दोनों बढ़ सकती हैं।
धौलाकुआं स्थित क्षेत्रीय बागवानी अनुसंधान एवं प्रशिक्षण केंद्र के सह-निदेशक डॉ. विशाल राणा ने बताया कि उन्होंने ऑस्ट्रेलिया दौरे के दौरान इस फल की खेती देखी और इसके बाद एनबीपीजीआर (नेशनल ब्यूरो ऑफ प्लांट जेनेटिक रिसोर्सेज, नई दिल्ली) से इंपोर्ट परमिट लेकर कुछ पौधे भारत लाए। अब इन पर वैज्ञानिक तरीके से शोध हो रहा है।
नौणी विश्वविद्यालय के अनुसंधान निदेशक डॉ. संजीव चौहान ने बताया कि यदि यह प्रयोग पूरी तरह सफल रहा, तो यह बेर प्रदेश के किसानों और बागवानों के लिए गुठलीदार फलों का एक नया विकल्प बन सकता है। खासकर उन क्षेत्रों के लिए जहां सिंचाई की सुविधा सीमित है।
यह नया फल जून महीने तक तैयार हो सकता है। उम्मीद की जा रही है कि आने वाले समय में यह जुजुबे बेर प्रदेश के किसानों की आमदनी बढ़ाने में अहम भूमिका निभाएगा।