बागबानी करने वाले किसानों को फसल में दीमक लगने का डर सबसे अधिक रहता है। ऐसे में कुछ देसी तकनीक अपनाकर किसान इस समस्या का समाधान पा सकते हैं। खासकर बारिश के मौसम में फलदार पौधों में दीमक और कीड़ों का खतरा बढ़ जाता है, जिससे पौधे नष्ट हो सकते हैं। विशेषज्ञों ने देसी तकनीकों से इसका समाधान बताया है। जड़ों में गोबर की खाद, नीम की पत्तियां डालने और नीम के पत्तों से बने देसी कीटनाशक के नियमित छिड़काव से पौधों को बचाया जा सकता है। साथ ही नीला थोथा और चूने से तैयार देसी घोल भी रस चूसक रोगों के लिए कारगर है। आप जानते हैं कि बारिश के समय नींबू, करौंदा, बिल्वपत्र, आंवला सहित अनेक बागनी पौधे की जड़ों में नमी के कारण दीमक और कीड़े का खतरा काफी अधिक बढ़ जाता है। फलदार पौधों में कीड़े और दीमक लगने से वह पेड़ पूरी तरीके से नष्ट हो जाता है। फलदार पेड़ पर दीमक लगने की स्थिति में ऊपर से पता नहीं लगता है कि इनमें रोग है। पौधों को दीमक से बचने के लिए इसकी जड़ों से जाले निकाल ले, उसके बाद जड़ों में गोबर की खाद डाल दे। इसके बाद नीम की पत्तियां डाल दे। इस तकनीक से फलदार पौधों में पैदावार अच्छी होती है।
विशेषज्ञों के अनुसार पौधे को लंबे समय तक जीवित रखने के लिए यह प्रक्रिया हर 6 महीने में एक बार करें। उन्होंने बताया कि फलदार पौधों के रोगों के इलाज के लिए मेडिकल से लाए गए कीटनाशक का उपयोग नहीं करें। अगर पौधे ऊपर से नीचे की ओर सूखने लगे तो उपचार के लिए नीम के पत्तों को उबालकर देसी कीटनाशी बनाना बनाकर इसका छिड़काव करें। बिना कोई पैसे खर्च किए घर बैठे कीटनाशक दवा तैयार हो जाएगी।
कीटनाशक दवा बनाने की विधि
इस विधि में नीम की पत्तियां अच्छी तरह उबालकर इसे एक दो दिन तक ठंडा होने के लिए छोड़ देते हैं। इसके बाद छानकर यह स्प्रे हर 15 दिन में करने से डाई बैक रोग दूर हो जाता है। इस विधि से बरसात और सर्दी में लगने वाला सफेद मच्छर रोग भी नहीं लगता है। इस रोग में पौधों की पत्तियां मुड़ने लगती हैं, छेद होते हैं व फल गिर जाते हैं। इसके अलावा रसचूसक जीवाणु दूर करने के लिए 500 लीटर पानी में एक किलो नीला थोथा, चूने की सौ ग्राम कली डाल दें। इस घोल को पांच दिन के लिए छोड़ दें । बाद में छानकर बरसात के दिनों में 15 दिनों के अंतराल में स्प्रे करेंगे तो पौधों में रसचूसक जीवाणु रोग नहीं लगता है।