एरोपोनिक तकनीक में पौधे को मिट्टी की ज़रूरत नहीं होती है बल्कि पौधा हवा में लटका होता है और उसकी जड़ें नियंत्रित वातावरण में ठंडी हवा, नमी और पोषक तत्वों से पोषित होती हैं। इससे वायरस रहित, उच्च गुणवत्ता वाले बीज तैयार होते हैं। विशेषज्ञों के अनुसार इस तकनीक से आलू के उत्पादन में 30 प्रतिशत तक की वृद्धि हो सकती है। एक पौधे से 400 से 500 मिनी-ट्यूबर तैयार होते हैं जिन्हें खेतों में लगाकर बड़े आकार के आलू का उत्पादन होगा।
डॉ. रणधीर कुमार, जो इस प्रोजेक्ट के प्रमुख वैज्ञानिक हैं, ने बताया कि इस यूनिट को स्थापित करने में 4 करोड़ 20 लाख रुपये की लागत आई है। इससे पहले बिहार में जी-0 बीज दूसरी जगह से मंगवाना पड़ता था, लेकिन अब राज्य में जी-0 से लेकर जी-4 तक उत्पादन किया जाएगा। यह उम्मीद जताई जा रही है कि अगले तीन वर्षों में एरोपोनिक विधि से तैयार आलू किसानों के खेतों में पहुंच जाएगा।
इस प्रोजेक्ट का विस्तार बिहार के 16 कृषि विज्ञान केंद्रों तक किया जाएगा। कुलपति ने आगे कहा कि इससे किसानों की आर्थिक स्थिति बेहतर होगी और बिहार का आलू न केवल देश में बल्कि विदेशों में भी अपनी छाप छोड़ेगा।