Agriculture and horticulture in Himachal Pradesh is becoming toxic due to indiscriminate use of pesticides.

कीटनाशकों के इस्तेमाल से विषाक्त हो रही है कृषि-बागवानी

नई दिल्ली। हिमाचल  प्रदेश के कृषि और बागवानी में कीटनाशकों के अंधाधुंध इस्तेमाल से विषाक्त हो रही है। प्राकृतिक खेती के लिए सरकारें कई अभियान चला रही हैं। राज्य सरकार बजट में भी हर साल घोषणाएं होती हैं। लेकिन धरातल पर काम नहीं हो रहा। इससे कृषि-बागवानी में जहर घुलने का सिलसिला कम नहीं हो रहा है। मगर वे भी इस दिशा में कुछ कर नहीं पाए।

प्रदेश में सेब बागवानी का करीब 5,000 करोड़ रुपये का सालाना कारोबार है। ज्यादातर बागवानों को सेब बागवानी प्राकृतिक तरीके से करना संभव नहीं लगती है। परिवार के भरण-पोषण के लिए राज्य के लाखों बागवान सेब की फसल पर ही निर्भर रहते हैं। वे बागवानी की प्रचलित तकनीकों को त्यागकर इस स्थिति में नहीं हैं कि प्राकृतिक खेती के लिए प्रयोग करें।

बागवानों का कहना हैं कि, प्राकृतिक खेती कर रहा हूं। इससे न सिर्फ सेब का उत्पादन बढ़ा है बल्कि गुणवत्ता में भी सुधार हुआ है। प्राकृतिक खेती से जमीन में केंचुओं और मित्र कीटों की संख्या बढ़ी है। कीटनाशकों के प्रयोग से मित्र कीट और शत्रु कीट दोनों मर जाते हैं और मिट्टी की उर्वरता कम हो जाती है।

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