हरिशंकरी : पौराणिक एवं पर्यावरणीय महत्व

हरिशंकरी, जैसा कि नाम से स्पष्ट है कि हरि अर्थात भगवान विष्णु एवं शंकर अर्थात भगवान शिव, की छायावाली। दूसरे शब्दों में कहें तो हिन्दू मान्यता में पीपल को श्री विष्णु व बरगद को श्री भोले शंकर का स्वरूप माना जाता है। मत्स्य पुराण के अनुसार पार्वती जी के श्राप वश विष्णु-पीपल, शंकर-बरगद व ब्रहमा-पाकड़ वृक्ष बन गये। इसीलिए पीपल, बरगद व पाकड़ के सम्मिलित रोपण को ‘हरिशंकरी‘ कहते हैं। हरिशंकरी की स्थापना एक परम पुण्य व श्रेष्ठ परोपकारी कार्य है। हरिशंकरी के तीनों वृक्षों अर्थात पीपल, बरगद और पाकड़ को एक ही स्थान पर इस प्रकार रोपित किया जाता है कि तीनों वृक्षों का संयुक्त छत्र विकसित हो व तीनों वृक्षों के तने विकसित होने पर एक तने के रूप में दृष्टिगोचर हों। हरिशंकरी का रोपण वैसे तो पूरे भारतवर्ष में किया जाता है किन्तु उत्तर प्रदेश के बलिया, गाजीपुर, मऊ व आसपास के जनपदों में विशेष रूप से किया जाता है।

हरिशंकरी के तीन वृक्षों में प्रथम है पीपल। पीपल को संस्कृत में पिप्पल (अर्थात इसमें जल है), बोधिद्रुम (बोधि प्रदान करने वाला वृक्ष), चलदल (लगातार हिलने वाली पत्तियों वाला), कुन्जराशन (हाथी का भोजन), अच्युतावास (भगवान विष्णु का निवास), पवित्रक (पवित्र करने वाला), अश्वत्थ (यज्ञ की अग्नि का निवास स्थल) तथा वैज्ञानिक भाषा में फाइकस रिलिजिओसा कहते हैं, जो मोरेसी कुल का सदस्य है।

यह सर्वाधिक ऑक्सीजन प्रदान करने वाला वृक्ष है। चिड़िया इसके फलों को खाकर जहां मल त्याग करती हैं वहां थोड़ी सी नमी प्राप्त होने पर यह अंकुरित होकर जीवन संघर्ष करता है। दूर-दूर तक जड़ें फैलाकर जल प्राप्त कर लेना इसकी ऐसी दुर्लभ विशेषता है जिसके कारण इसका नाम संस्कृत में पिप्पल (अर्थात इसमें जल है), रखा गया है। वैज्ञानिक भी इसे पर्यावरणीय दृष्टि से अत्यधिक महत्व का वृक्ष मानते हैं। औषधीय दृष्टि से पीपल शीतल, रूक्ष, वर्ण को उत्तम बनाने वाला तथा पित्र, कफ एवं रक्तविकार को दूर करने वाला है।

इस वृक्ष में भगवान विष्णु का निवास माना जाता है। भगवान कृष्ण ने गीता में कहा है कि वृक्षों में मैं पीपल हूँ (अश्वत्थः सर्व वृक्षाणाम)। इस वृक्ष के रोपण, सिंचन, परिक्रिमा, नमन-पूजन करने से हर तरह से कल्याण होता है और सभी दुर्भाग्यों का नाश होता है। जलाशयों के किनारे इस वृक्ष के रोपण का विशेष पुण्य बताया गया है, (इसकी पत्तियों में चूना अधिक मात्रा में होता है जो जल को शुद्ध करता है)। ध्यान करने के लिए पीपल की छाया सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है, रामचरितमानस में वर्णन है कि काकभुशुण्डि जो पीपल के वृक्ष के नीचे ध्यान करते थे (पीपर तरू तर ध्यान जो धरई)। वृक्षायुर्वेद के अनुसार, ‘जो व्यक्ति विधि पूर्वक पीपल वृक्ष का रोपण करता है, वह चाहे जहाँ भी हो, भगवान विष्णु के लोक को जाता है।‘

इसी कड़ी में दूसरा वृक्ष है बरगद। इसे संस्कृत में वट (घेरने वाला), न्यग्रोध (घेरते हुए बढ़ने वाला), बहुपाद, रोहिण व यज्ञावास कहते हैं। अंग्रेजी भाषा में इसे बैनयन ट्री तथा वनस्पति विज्ञान की भाषा में फाइकस बेन्गालेन्सिस कहते हैं, जो कि मोरेसी कुल का सदस्य है।

यह सदाहरित विशालकाय छाया वृक्ष है, जो पूरे भारत में पया जाता है। इसकी शाखाओं से जड़ें निकल कर लटकती हैं जो जमीन में प्रवेश करने के बाद अपनी शाखा को अपने माध्यम से पोषण व आधार प्रदान करने लगती है। इस प्रकार बरगद का वृक्ष अपना विस्तार बढ़ाता जाता है। इसी कारण यह अक्षयकाल तक जीवित रहने की क्षमता रखता है। अतः अत्यधिक पुराने बरगद वृक्षों को प्राचीन काल में अक्षय वट कहा जाता था। इसकी छाया घनी होती है।

इसके फलो को मानव व पशु-पक्षी खाते हैं, जो शीत व पौष्टिक गुणयुक्त होते हैं। इसके दुग्धस्राव को कमरदर्द, जोड़ों के दर्द, सड़े हुए दांत का दर्द, बरसात में होने वाली फोड़े-फुन्सियों पर लगाने से लाभ मिलता है। इसकी छाल का काढ़ा बहुमूत्र में तथा फल मधुमेह में लाभप्रद है।

इस वृक्ष में भगवान शंकर का निवास माना जाता है। कथा सुनने के लिए इस वृक्ष की छाया उत्तम मानी जाती है। वटवृक्ष के विस्तार करने की अदम्य क्षमता व अक्षयकाल तक जीवित रहने की सम्भावना इसे पूज्य बनाती है। कहा जाता है कि सीता जी ने वनवास की यात्रा में बरगद के वृक्ष की पूजा की थी।

वट सावित्री व्रत पति की लम्बी आयु के लिए ज्येष्ठ अमावस्या को महिलाओं द्वारा किया जाता है। वृक्षायुर्वेद के अनुसार घर के पूरब में स्थित बरगद वृक्ष सभी कामनाओं की पूर्ति करने वाला होता है।

बरगद का वृक्ष भारत का राष्ट्रीय वृक्ष भी है। यह अत्यंत पवित्र वृक्ष माना जाता है एवं इसके नीचे मंदिर भी बनाये जाते हैं। इसके बढ़े आकार के कारण यह अत्यंत छायादार वृक्ष भी है। भारत में बरगद के दो सबसे बड़े पेड़ कोलकाता के राजकीय उपवन में और महाराष्ट्र के सतारा उपवन में हैं। आज भी बरगद के वृक्ष को ग्रामीण जीवन का केंद्र बिंदु माना जाता है और आज भी गांव की पंचायत इसी पेड़ की छाया में सम्पन्न होती है।

हरिशंकरी का तीसरा वृक्ष पाकड़ है। पाकड़ को संस्कृत में प्लक्ष (नीचे जाने वाला), पर्कटी (सम्पर्क वाली), पर्करी, जटी कहते हैं। वनस्पति विज्ञान की भाषा में इसे फाइकस इनफेक्टोरिया कहते हैं जो कि मोरेसी कुल का सदस्य है।

यह लगभग सदा हरा भरा रहने वाला वृक्ष है जो शीत ऋतु के अंत में थोड़े समय के लिए पतझड़ में रहता है। इसका छत्र काफी फैला हुआ और घना होता है। इसकी शाखायें जमीन के समानान्तर काफी नीचे तक आ जाती हैं। जिससे घनी शीतल छाया का आनन्द बहुत करीब से मिलता है। इसकी विशेषता के कारण इसे प्लक्ष या पर्कटी कहा गया जो हिन्दी में बिगड़कर क्रमशः पिलखन व पाकड़ हो गया। यह बहुत तेज बढ़कर जल्दी छाया प्रदान करता है। शाखाओं या तने पर जटा मूल चिपकी या लटकी रहती है। फल मई-जून तक पकते हैं व वृक्ष पर काफी समय तक बने रहते हैं। गूलर की तुलना में इसके पत्ते अधिक गाढ़े रंग के होते हैं जो सहसा काले प्रतीत होते हैं। जिसके कारण इस वृक्ष के नीचे अपेक्षाकृत अधिक अंधेरा प्रतीत होता है।

यह घनी और कम ऊँचाई पर छाया प्रदान करने के कारण सड़कों के किनारे विशेष रूप से लगाया जाता है। इसकी शाखाओं को काटकर रोपित करने से वृक्ष तैयार हो जाता है। औषधीय दृष्टि से यह शीतल एवं दाह, पित्त, कफ, रक्त विकार को दूर करने वाला है।

पौराणिक मान्यता के अनुसार नौ द्वीपों में एक द्वीप का नाम प्लक्ष द्वीप है जिस पर पाकड़ का वृक्ष है। मान्यता के अनुसार पाकड़ वनस्पति जगत का अधिपति व नायक है और याज्ञिक कार्यों हेतु श्रेष्ठ छाया वृक्ष है। नारद पुराण के अनुसार ब्रह्रमा जी ने विश्व में साम्राज्यों का बंटवारा करते समय पाकड़ को वनस्पतियों का राजा नियुक्त किया। वृक्षायुर्वेद के अनुसार घर के उत्तर में पाकड़ का वृक्ष लगाना शुभ होता है।

इस प्रकार हरिशंकरी के तीनों वृक्षों पीपल, बदगद व पाकड़ का अत्यन्त ही महत्व है। हरिशंकरी में तमाम पशु-पक्षियों व जीव-जन्तुओं को आश्रय व खाने को फल मिलते हैं। इस प्रकार हरिशंकरी के रोपण से इन जीव-जन्तुओं का आशीर्वाद मिलता है, इस पुण्यफल की बराबरी कोई भी दान नहीं कर सकता।

हरिशंकरी कभी भी पूर्ण पूर्णरहित नहीं होती है, वर्षभर इसके नीचे छाया बने रहने से पथिकों, विश्रान्तों एवं साधकों को छाया मिलती है। इसी की छाया में दिव्य औषधीय गुण व पवित्र आध्यात्मिक प्रवाह निसृत होते रहते हैं, जो इसके नीचे बैठने वाले को पवित्रता, पुष्टता और ऊर्जा प्रदान करते हैं।

पर्यावरण संरक्षण व जैव विविधता संरक्षण की दृष्टि से पीपल, बरगद व पाकड़ सर्वश्रेष्ठ प्रजातियां मानी जाती हैं। हरिशंकरी का रोपण हर प्रकार से महत्वपूर्ण एवं पुण्यदायक कार्य है। इसे धर्म स्थलों, विश्राम स्थलों पर रोपित करना चाहिए। हमें इसके पौराणिक एवं पर्यावरणीय महत्व के सम्बन्ध में सभी को विशेषकर बच्चों को बताना चाहिए ताकि हमारी यह धरोहर अनन्तकाल तक बनी रहे और इसके लाभ प्राप्त करती रहे (डॉ दीपक कोहली)।

  1. गांवों में हरिशंकरी पौधों से कम होगी गर्मी की तपिश

धरती पर बढ़ती गर्मी का सितम कम करने के लिए हर साल करोड़ों पौधे रोपे जाते हैं, लेकिन उसमें से कुछ ही पौधे बच पाते हैं। यही कारण है कि अब तक चले पौधरोपण अभियान का खास असर नहीं दिखा। सरकार अब ऐसे पौधों को लगाने की तैयारी कर रही है जिनका वैज्ञानिक के साथ आध्यात्मिक महत्व हो, साथ ही अकेले ही कई वृक्षों के बराबर हो जिससे वह विपरीत परिस्थितियों में भी मुरझाने से बच जाएं। इस बार प्रत्येक गांव में पीपल, बरगद व पाकड़ के सम्मिलित रोपण वाले हरिशंकरी पौधे लगाए जाएंगे। ब्रह्म, विष्णु व महेश को प्रिय कहे जाने वाले इन पेड़ों की देखभाल ग्राम पंचायत के जिम्मे होगी। यह एक वृक्ष ही कई पेड़ों के बराबर होने से ग्रामीणों को अधिक छाया व शीतलता मिलेगी जिससे सूरज का सितम कम होगा। खास बात यह है कि आस्था से जुड़े होने के चलते इन पौधों को संरक्षित करने में ग्रामपंचायतों को अधिक मेहनत नहीं करनी होगी। कारण ग्रामीण आज भी इनकी लकड़ी काटने व जलाने से परहेज करते हैं।

बरगद को लेकर मान्यता है कि इसकी शाखाओं में भगवान श्रीविष्णु का निवास होता है। 24 घंटे आक्सीजन का उत्सर्जन करने वाले पीपल पर ब्रह्मदेवता का निवास माना जाता है। पाकड़ का वृक्ष भी भगवान शिव समेत अन्य देवताओं की ओर से संरक्षित माना जाता है। सदा हरा-भरा रहने वाले तीनों वृक्षों का क्षेत्र काफी फैला और घना होता है। इनकी शाखाएं जमीन के समानांतर काफी नीचे तक फैल जाती हैं। इससे घनी शीतल छाया मिलती है।

  1. जानिए हरिशंकरी पौधे का पौराणिक और औषधीय महत्व:

हरिशंकरी वृक्ष तैयार करना एक अत्यंत पुण्य व परोपकारी काम माना जाता है. हरिशंकरी के तीनों पौधों अर्थात पीपल, बरगद और पाकड़ को एक ही स्थान पर इस तरह रोपते हैं कि तीनों वृक्षों का संयुक्त छत्र विकसित हों. इससे तीनों पौधे विकसित होने पर एक तने के रूप में नजर आते हैं. पुराणों में भी इस पौधे का उल्लेख मिलता है.

. पौराणिक मान्यता के अनुसार पाकड़ को वनस्पति जगत का नायक कहा जाता है. वैदिक अनुष्ठान व हवन आदि में इसकी ख़ास अहमियत होती है.

  1. बच्चों को बताएं हरिशंकरी का महत्व:
    पर्यावरण संरक्षण व जैव विविधता के नजरिए से पीपल, बरगद व पाकड़ सर्वश्रेष्ठ प्रजातियां मानी जाती हैं. इसे सड़क किनारे, धर्म स्थलों, सामुदायिक भवनों और गौठान आदि के आसपास लगाना चाहिए. अपनी सामाजिक जिम्मेदारी के तहत इसके पौराणिक एवं पर्यावरणीय महत्व के बारे में अधिक से अधिक लोगों को बताना चाहिए. भविष्य में यह विरासत बची रहे इसके लिए हमें बच्चों को खासतौर पर इसकी अहमियत के बारे में जानकारी देनी होगी.
  2. जीवजंतुओं के लिए भी उपयोगी
    हरिशंकरी के तीनों वृक्षों पीपल, बदगद व पाकड़ का अत्यन्त ही महत्व है. हरिशंकरी में तमाम पशु-पक्षियों व जीव-जन्तुओं को आश्रय व खाने को फल मिलते हैं. इस प्रकार हरिशंकरी के रोपण से इन जीव-जन्तुओं का आशीर्वाद मिलता है, इस पुण्यफल की बराबरी कोई भी दान नहीं कर सकता. यह हमेशा हरा भरा रहने वाला वृक्ष है. शीत ऋतु के अंत में थोड़े समय के लिए पतझड़ में रहता है. इसका छत्र काफी विस्तृत और घना होता है. इसकी शाखायें जमीन के समानान्तर काफी नीचे तक आ जाती हैं. इसके नीचे घनी शीतल छाया का आनन्द बहुत ही अच्छी अनुभूति देता है.इसकी शाखाओं या तने पर जटा मूल चिपकी या लटकी रहती है. इसके फल मई-जून तक पकते हैं और वृक्ष पर काफी समय तक बने रहते हैं.
  3. पंचबटी क्या है :

पंचवटी यानी वट, पीपल, पाकड़, करील और रसाल में शामिल प्रमुख पेड़ पाकड़ मानव शरीर के साथ पर्यावरण के लिए औषधि का काम करता है। सैकड़ों साल तक जीवित रहने और किसी भी परिस्थिति में पनपने की क्षमता, सबसे कम पतझड़ काल, सर्वाधिक पत्तियों के कारण पाकड़ बढ़ती उम्र के साथ आक्सीजन उत्सर्जन बढ़ाता है। महर्षि पतंजलि ने प्लक्ष (पाकड़ का संस्कृत नाम) का वर्णन औषधि के रूप में किया है। बरगद, पीपल व गूलर की तरह दूध युक्त इस पेड़ के फल, जिसे पकुआ कहते हैं, खाने के काम आता है। थाईलैंड में तो इसकी पत्तियां साग के तौर पर खाई जाती हैं। घर के उत्तर में पाकड़ का पेड़ लगाना ज्योतिषीय दृष्टि से शुभ माना जाता है।

5.1 इनके लाभ

  • छाल का काढ़ा हड्डियां मजबूत करता है
  • पत्तियां मधुमेह नियंत्रित रखने के काम आती हैं
  • चोट लगने या कटने पर छाल का चूर्ण डालने से रक्त स्नाव बंद हो जाता है
  • नासूर के लिए पाकड़ रामबाण औषधि है। पाकड़ की छाल का काढ़ा पीना लाभप्रद होता है
  • छाल को पानी में उबालकर उस पानी से नहाने से पसीने की बदबू धीरे-धीरे खत्म होने लगती है
  • पाकड़ की छाल घी में पीसकर लगाने से त्वचा की जलन शांत होती है, त्वचा संबंधी रोग दूर होते हैं
  • छाल के काढ़े का कुल्ला दांत दर्द और मुंह की बदबू से निजात दिलाता है। छाल का चूर्ण भी लाभप्रद होता है
  • छाल के सेवन से रक्त पित्त दोष व वायु दोष से भी निजात मिलती है। इसका फल भी वायु दोष से मुक्ति दिलाता है
  • श्वेत प्रदर (ल्यूकोरिया) और रक्त प्रदर में पाकड़ की छाल का काढ़ा लाभप्रद होता है। रक्त प्रदर में छाल का चूर्ण भी प्रयोग कर सकते हैं
    1. पाकड़ काबृक्ष:

पाकड़ काबृक्ष:

पाकड़, पिलखन या पकड़िया भारतवर्ष में बहुतायत से पाया जाने वाला एक हराभरा वृक्ष है। इसे अंग्रेजी में Ficus virens और मोरेसी परिवार से संबंधित है, तथा संस्कृत में पर्कटी, भिदुरः, दृढप्रारोहः, हृस्वपर्ण, मंगलछायः, प्लक्ष या रामअंजीर कहते हैं। फाइकस वंश का एक पेड़ है जिसमें फैली हुई छतरी के साथ एक अंजीर होता है। आमतौर पर हवाई जड़ें मुख्य तने के चारों ओर लिपट जाती हैं। इस पेड़ की ऊंचाई 24 से 27 मीटर (79-89 फीट) तक हो सकती है, इस पौधे की पत्तियाँ लगभग 8 से 19 सेंटीमीटर लंबी और 3 से 6 सेंटीमीटर चौड़ी होती हैं। स्टीप्यूल्स की लंबाई 1 सेंटीमीटर से कम होती है। मटर के आकार के अंजीर का रंग धब्बेदार हरे-सफेद से लेकर भूरे रंग का हो सकता है और ये अंजीर जोड़े में मौजूद होते हैं। पाकड़ एक आकर्षक छायादार वृक्ष है जिसके पत्ते फरवरी महीने के मध्य में गिरने लगते हैं। नई विकासशील पत्तियों को मार्च में लाल-गुलाबी, बैंगनी, या कांस्य के रंग की छाया के साथ देखा जा सकता है, जो पेड़ को एक आकर्षक स्वरूप प्रदान करता है।

  • पाकड़ के अन्य नाम हैं:
  • सफेद अंजीर
  • पाकड़
  • पिलखन
  • चिंग हेइबोंग
  • बसारी
  • गंधुम्बरा
  • जिन क्षेत्रों में पाकड़ का पेड़ सबसे अधिक उगाया जाता है उनमें शामिल हैं:
  • भारत
  • दक्षिण – पूर्व एशिया
  • मलेशिया
  • उत्तरी ऑस्ट्रेलिया

1.1 औषधीय उपयोग

पाकड़ भारत का एक प्रसिद्ध औषधीय पौधा है और आयुर्वेद में लंबे समय तक उपयोग किया जाता है, प्राचीन भारतीय औषधीय प्रणाली शरीर के कई विकारों जैसे कि मूत्र रोग, श्वसन रोग, बवासीर, सूजन की स्थिति, दस्त, यकृत रोग, के उपचार के लिए प्राचीन भारतीय औषधीय प्रणाली है। पाकड़ में एंटी-डायबिटिक, एंटीमाइक्रोबियल, हेपेटोप्रोटेक्टिव, एंटीट्यूसिव, एंटी-इंफ्लेमेटरी, एंटीपीयरेटिक सहित कई स्वास्थ्य लाभकारी गुण होते हैं। पाकड़ के विभिन्न भागों में विभिन्न प्रकार के फाइटोकेमिकल सक्रिय घटक पाए जाते हैं जो वास्तव में स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद होते हैं।

1.2 पाकड़ का उपयोग विभिन्न स्वास्थ्य समस्याओं के लिए किया जाता है

  • पाकड़ के फल, लेटेक्स और पत्तियां सांप के काटने से होने वाले ज़हरीले प्रभाव वाले सामयिक और आंतरिक विकारों के इलाज में फायदेमंद हैं।
  • पाकड़ के सफेद लेटेक्स सूजन को कम करने के लिए शीर्ष पर लगाया जाता है।
  • दिल की बीमारियों के जोखिम को कम करने के लिए पके फलों को सीधे या जैम के रूप में गुड़ या चीनी के साथ मिलाकर खाया जा सकता है।
  • पका हुआ अंजीर अपच की स्थिति में भी राहत प्रदान करने में सहायक होता है।
  • तने की छाल के रस का काढ़ा अल्सर की स्थिति में इस्तेमाल किया जा सकता है और घावों और कटने की सूजन को कम करने के लिए लगाया जा सकता है।
  • पाकड़ मैं अंजीर की पत्तियों और छाल का काढ़ा योनि स्राव के इलाज में उपयोगी होता है।
  • इसका सूप मधुमेह के इलाज में भी बहुत फायदेमंद होता है और पसीने की दुर्गंध को कम करता है।
  • पाकड़ को अन्य फाइकस जेनिकुलता, फिकस हिस्पिडा और सफेद अंजीर की युवा पत्तियों को गर्म पानी में उबालकर और मौखिक रूप से सेवन करने से भी डायरिया का प्रबंधन किया जा सकता है।
  • ज्वर आने पर पके हुए अंजीर या ग्वार अंजीर को आग पर भूनकर नमक के साथ सेवन किया जा सकता है।
  • फिकस वीरेन्स के स्वास्थ्य लाभ
    • पाकड़ के विभिन्न भागों का उपयोग करके जिन रोगों का प्रबंधन किया जा सकता है उनमें शामिल हैं:
  • मधुमेह
  • उच्च रक्तचाप
  • हृदय संबंधी विकार
  • दस्त
  • मूत्र मार्ग में संक्रमण
  • योनि स्राव
  • दमा
  • खाँसी
  • गैस्ट्रिक विकार
  • अतिरज
  • पेचिश
  • पाकड़ की पत्तियों का सेवन थाई व्यंजनों में किया जाता है और थाई भाषा में इसे फाक लुएट के रूप में जाना जाता है। उन्हें उत्तरी थाई करी में सब्जी के रूप में उबाल कर खाया जा सकता है।
  1. पीपल का बृक्ष और उसका महत्ब

 

पीपल के बृक्ष

पीपल के पेड़ को भारतीय उपमहाद्वीप का पौराणिक ‘ट्री ऑफ लाइफ’ या ‘वर्ल्ड ट्री’ माना जाता है। पीपल का पेड़, जिसे फाइकस रिलिजिओसा भी कहा जाता है, मोरेसी परिवार से संबंधित है, यह अंजीर के पेड़ का एक प्रकार है जिसे बोधि वृक्ष के रूप में जाना जाता है। लैटिन में ‘फिकस’ शब्द ‘अंजीर’, पेड़ का फल और ‘रिलिजियोसा’ शब्द ‘धर्म’ को संदर्भित करता है, क्योंकि यह बौद्ध धर्म और हिंदू धर्म दोनों में पवित्र है। साथ ही इसी वजह से इसे ‘पवित्र अंजीर’ नाम दिया गया है। यह एक विशाल वृक्ष है जो अक्सर पवित्र स्थानों और मंदिरों के पास लगाया जाता है।1

पीपल के पेड़ों के स्थानीय नाम हैं पीपल, हिंदी में पिपला; गुजराती में जरी, पिपलो, पिपलो, पिपरो; पिंपल, पीपल, मराठी में पिप्पल; बंगाली में आशुद, अश्वत्था, अश्वत्था; उड़िया में अश्वथ; असमिया में अहंत; पिप्पल, पंजाबी में पीपल; तेलुगु में रविचेत्तु; तमिल में अरारा, अरासु, अरसन, अश्वर्थन, अरसमाराम; कन्नड़ में रणजी, अरलो, बसरी, अश्वथा, अश्वत्थानारा, अरलेगिडा, अरलीमारा, बसारी, अश्वथामारा, अश्वत्था; मलयालम में अरयाल; कश्मीरी में बुरा।

परंपरागत रूप से, पीपल के पेड़ के पत्तों का रस खांसी, दमा, दस्त, कान दर्द, दांत दर्द, रक्तमेह (पेशाब में खून), माइग्रेन, खाज, आंखों की परेशानी और गैस्ट्रिक समस्याओं के लिए मददगार हो सकता है। पीपल के पेड़ की तने की छाल पक्षाघात, गोनोरिया, अस्थि भंग, दस्त और मधुमेह में मदद कर सकती है। हालांकि, ऊपर बताए गए उद्देश्यों के लिए लाभों के संभावित उपयोग को साबित करने के लिए अधिक अध्ययन की आवश्यकता है। इसके अलावा, इसका उपयोग स्व-दवा के लिए नहीं किया जाना चाहिए।

2.1 पीपल के पेड़ के हिस्सों (प्रति 100 ग्राम) का पोषक तत्व ॰3 है

पोषक तत्व ताजे फल सूखे मेवे पत्ते छाल
कार्बोहाइड्रेट 21.2 g 68.33 g 19.20 g 15.4 g
प्रोटीन 2.5 g 8.48 g 13.55 g 2.5 g
वसा 1.7 g 0.143 g 2.5 g 1.7 g
कच्चा रेशा 9.9 g 26.1 g 9.9 g
आहार फाइब 69.43 g
कैल्शियम 289 mg 848 mg 1.67 mg 16.1 mg
लोहा 6 mg 0.18 mg 623 mg
ताँबा 0.105 mg
मैंगनीज 0.355 mg
जस्ता 0.09 mg

पीपल के पेड़ के पोषण मूल्य को दर्शाने वाली तालिका

2.2 पीपल के पेड़ के गुण :

  • इसमें एंटीडायबिटिक गुण हो सकते हैं
  • इससे इम्यूनिटी क्षमता बड़ती है
  • यह एक एंटीऑक्सीडेंट के रूप में कार्य करता है
  • इसमें एनाल्जेसिक (दर्द निवारक) गुण होते हैं
  • यह एक एंटीकॉन्वल्सेंट के रूप में कार्य करता है (फिट्स की गंभीरता को कम करता है या रोकता है)
  • यह एक रोगाणुरोधी होता है (रोगाणुओं को मारता है)
  • यह घाव भरने में मदद करता है
  • यह एक एंटी-एमनेसिक होता है (याददाश्त के नुकसान को रोकता है)
  • यह एक एंटी-अल्सर एजेंट के रूप में कार्य करता है
  • इसमें एक एंटी-पार्किंसंस एजेंट के रूप में क्षमता होती है (पार्किंसंस रोग मस्तिष्क का एक विकार है जो शरीर की गतिविधियों को प्रभावित करता है)
  • यह अस्थमा-रोधी होता है
  • यह गुर्दा-सुरक्षा एजेंट के रूप में मदद करता है

2.3 पीपल के पेड़ का प्रयोग कैसे करें?

  • सूखे पत्ते का पाउडर बनाकर
  • सूखे छाल का चूर्ण बनाकर
  • कच्चे पत्तों का रस
  • छाल का काढ़ा बनाकर
  1. बरगद का बृक्ष

बरगद का बृक्ष

सड़कों पर आते-जाते अक्सर हम कई पेड़ देखते हैं। ये पेड़ हमें ऑक्सीजन और छांव देते हैं। इन्हीं पेड़ों में से एक है बरगद का पेड़। इसका वैज्ञानिक नाम फाइकस बेंगालेंसिस (Ficus Benghalensis) और मोरेसी कुल का पौधा है। वैसे तो हर पेड़ का अपना एक अलग महत्त्व है, लेकिन यह पेड़ कुछ अलग है। वजह यह है कि यह पेड़ लंबे समय तक टिका रहता है। सूखा और पतझड़ आने पर भी यह हरा-भरा बना रहता है और सदैव बढ़ता रहता है। यही कारण है कि इसे राष्ट्रीय वृक्ष का दर्जा प्राप्त है। धार्मिक तौर पर तो यह पूजनीय है ही, लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि अपने औषधीय गुणों के कारण यह कई शारीरिक समस्याओं को दूर करने में भी कारगर साबित होता है। यहीं कारण है कि सालों से इसका इस्तेमाल आयुर्वेदिक दवा में किया जा रहा है। दवा के रूप में इसका इस्तेमाल करने से पहले आयुर्वेदिक डॉक्टर से परामर्श जरूर लें।

3.1 बरगद के पेड़ के फायदे

बरगद के पेड़ के विभिन्न भागों में औषधीय गुण होते हैं। इनमें से कुछ महत्वपूर्ण गुणों के बारे में निम्नलिखित हैं:

  1. अंजीरी खाँसी में लाभदायक: बरगद की छाल में अंजीरी खाँसी में उपयोगी होती है।
  2. सर्दी जुकाम के लिए उपयोगी: बरगद की छाल में एंटीऑक्सीडेंट, एंटी-इंफ्लेमेटरी, एंटीबैक्टीरियल और एंटीफंगल गुण होते हैं जो सर्दी जुकाम जैसी समस्याओं में लाभदायक होते हैं।
  • पेट की समस्याओं के लिए उपयोगी: बरगद की छाल में एंटी-ऑक्सीडेंट और एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण होते हैं जो पेट की समस्याओं जैसे बदहजमी, गैस और अपच को कम करने में मदद करते हैं।
  1. चर्मरोगों के लिए उपयोगी: बरगद की छाल में एंटी-इंफ्लेमेटरी और एंटीबैक्टीरियल गुण होते हैं जो त्वचा संबंधी समस्याओं जैसे दाद, खुजली और एक्जिमा को कम करने में मदद करते हैं। ब्लड प्रेशर को कम करने में मदद करता है:

3.2 बरगद के पेड़ के पौष्टिक तत्व

पौष्टिक तत्वों की बात करें, तो बरगद के पेड़ में कई ऐसे रसायन मौजूद होते हैं, जिनके कारण इसे औषधीय गुणों से भरपूर माना गया है। आइए, कुछ बिंदुओं के माध्यम से उन पर डालते हैं एक नजर॰

  • एंथोसाइनिडिन
  • कीटोंस
  • स्टेरोल्स
  • फ्लेवोनॉयड
  • फिनोल
  • टैनिन्स
  • सैपोनिंस

3.3 बरगद की पत्तियों में पाए जाने वाले पोषक तत्व :

  • प्रोटीन (9.63 प्रतिशत)
  • फाइबर (26.84 प्रतिशत)
  • कैल्शियम (2.53 प्रतिशत)
  • फास्फोरस (0.4 प्रतिशत)

 हरिशंकरी के पौधों का बैज्ञानिक द्रस्टिकोंण

  1. पीपल : पीपल ही एकमात्र ऐसा वृक्ष है जो चौबीस घंटे ऑक्सीजन प्रदान करता है। लिहाजा वैज्ञानिक पर्यावरणीय द्रष्टि से इसे सर्वाधिक महत्वपूर्ण वृक्ष मानते हैं। वृक्ष में औषधीय गुण भी होते हैं। पित्त, कफ, वर्ण और रक्त विकार को दूर करने की क्षमता भी पौधे में होती है। इसकी पत्तियों में चूना अत्यधिक मात्रा में होता है जो जल शोधक का कार्य करता है।
  2. बरगद : इसकी जडे़ं जमीन में पहुंचकर दोबारा पौधों का रूप लेती हैं, जिससे मृदा की पकड़ भी मजबूत होती है। इसके दूध को कमर दर्द, जोड़ों के दर्द, सडे़ हुए दांतों के दर्द और बारिश में होने वाले फोडे़-फुंसियों में लगाने से लाभ मिलता है। इसकी छाल का काढ़ा बहुमूत्र में और फल मधुमेह में राहत देते हैं।
  • पाकड़ : औषधीय द्रष्टिकोण से यह शीतलता एवं वर्ण, पित्त, कफ, रक्त विकास, शोथ एवं रक्त पित्त को दूर करने में बेहद लाभकारी होता है।

पर्यावरण संरक्षण के लिए इन तीनों पौधों का संयुक्त रूप से रोपण कराना चाहिए। प्रचार-प्रसार के माध्यम से लोगों को इन पौधों का धार्मिक महत्व से अवगत कराना चाहिए। हमारा प्रयास है कि वृक्षों की रक्षा के लिए लोगों को धार्मिक आस्था के साथ जोड़ा जाए ताकि वे भी इन पौधों के प्रति संजीदा हो जाएं।

डिस्क्लेमर: यहां दी गई सभी जानकारी सामाजिक , धार्मिक और बैज्ञानिक द्रस्टिकोंण पर आधारित हैं. औषधि के तौर पर इन्हें अपनाने से पहले आप किसी विशेषज्ञ की सलाह अवश्य लें।

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

sosyal medya reklam ajansları en iyi sosyal medya ajansları medya ajansları istanbul reklam ajansları istanbul reklam ajansları reklam şirketleri en iyi reklam ajansları en ünlü reklam ajansları en iyi ajanslar listesi
slot gacor scatter hitam scatter hitam pgslot bewin999