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उन्नाव। हसनगंज क्षेत्र के किसान अब परंपरागत खेती छोड़कर फूलों और औषधीय पौधों की खेती की ओर तेजी से बढ़ रहे हैं। किसानों का कहना है कि पारंपरिक खेती में जहां मेहनत और खर्च ज्यादा होता है, वहीं फसल के उचित दाम नहीं मिल पाते। अब किसान गुलखैरा जैसे औषधीय पौधे की खेती कर न केवल लागत कम कर रहे हैं, बल्कि अच्छा मुनाफा भी कमा रहे हैं।
गुलखैरा के पौधे गुलाबी, बैंगनी और सफेद रंग के सुंदर फूलों से लदे रहते हैं। इसका इस्तेमाल आयुर्वेदिक और यूनानी दवाओं के निर्माण में होता है। किसानों रामचंद्र सिंह और छोटेलाल ने बताया कि गुलखैरा की खेती की सबसे खास बात यह है कि इसके पत्ते, तना और बीज – सभी हिस्से बाजार में अच्छे दामों पर बिकते हैं।
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नवंबर में बोई गई फसल अप्रैल-मई में तैयार हो जाती है। पकने के बाद पौधे के पत्ते और तना खेत में गिर जाते हैं, जिन्हें इकट्ठा कर सुखाया जाता है और फिर बाजार में बेचा जाता है। किसान बताते हैं कि सूखी फसल कई वर्षों तक खराब नहीं होती, जिससे अच्छा दाम मिलने पर इसे आराम से बेचा जा सकता है।
किसान सुंदर, कल्लू और शिवनाथ ने जानकारी दी कि एक बीघा खेत में 5 से 6 कुंतल तक गुलखैरा का उत्पादन हो जाता है। बाजार में इसकी कीमत 8 से 10 हजार रुपये प्रति कुंतल तक मिलती है। यूनानी दवाओं में मांग होने के कारण गुलखैरा की फसल की बाजार में हमेशा अच्छी कीमत मिलती है। क्षेत्र के किसानों में गुलखैरा की खेती के प्रति बढ़ती रुचि उनके जीवन यापन को नई दिशा दे रही है। इससे क्षेत्र में औषधीय खेती को भी बढ़ावा मिल रहा है।