A hall room was converted into a bed of saffron, new farmers are creating advanced farming

एक हाल कमरे को बनाया केसर की क्यारी, पैदा कर रहे एडवांस फार्मिंग के नए किसान

सत्येन्द्र प्रकाश

केसर की क्यारी  इस मुहावरे का रिश्ता कश्मीर से कुछ उसी तरह से है जैसे कभी किसी कवि ने वहां के रंग-बिरंगे फूलों, झीलों में तैरते शिकारे (हाउस बोट) से हरी-भरी खिलखिलाती वादियों को देखकर कहा था—अगर धरती पर कहीं स्वर्ग है, तो यहीं है यहीं है, यहीं है…। यानी कश्मीर में केसर की खेती काफी अच्छी होती है। यह बात इसके व्यापार से जुड़े लोग बखूबी जानते हैं। हालांकि यहां आपसे रूबरू होने की वजह केसर तो है लेकिन कश्मीर नहीं है। जी हां, यहां हम बात जिस केसर की क्यारी की करने जा रहे हैं, वह देश की राजधानी से सटे नोएडा (गौतमबुद्ध नगर) में है। यह खबर पिछले कुछ दिनों से चर्चा में आई है कि — साठ पार नया व्यापार, को जीवन में लागू करते हुए 64 साल के इंजीनियर रमेश गेरा अपने घर पर केसर उगा रहे हैं। इंजीनियर से केसर के किसान बने गेरा अब इससे अच्छी कमाई कर रहे हैं।

कमाई ही नहीं सिखाई (प्रशिक्षण) भी
कश्मीर की कली और ईरान की शान (सेफ्रॉन) केसर को रिहायशी कमरे में उगाने वाले रमेश गेरा केसर की खेती करने के इच्छुक दूसरे लोगों को भी कमरे के अंदर केसर उगाने प्रशिक्षण दे रहे हैं। वे उन्हें इस खेती के लिए उपयोग में आने वाले उपकरण और तकनीक की उपलब्धता भी सुनिश्चित करा रहे हैं।

इलेक्ट्रिकल इंजीनियर से बने फार्मिंग ट्रेनर
रमेश गेरा ने फोन पर नर्सरी टुडे को बताया कि साल 1980 में ठकळ ­­­कुरुक्षेत्र से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की डिग्री लेने के बाद, उन्होंने कई मल्टिनेशल कंपनियों में बड़े पदों पर काम किया। यह सिलसिला 35-36 साल तक चला। इस बीच उन्हें दुनिया के बहुत सारे देशों में जाने का मौका मिला। लेकिन उन्होंने साल 2017 में करीब 58 वर्ष की आयु में रिटायरमेंट ले लिया।

इस सवाल पर कि आप ठहरे खांटी इंजीनियर वह भी इलेक्ट्रिकल के, फिर आपको केसर की खेती की प्रेरणा कहां से मिली, गेरा ने बताया कि उन्हें फार्मिंग में नये प्रयोगों / नयी तकनीक जानने में रुचि शुरू से थी। इस नाते वे जब भी बाहर जाते छुट्टी के दिनों में वहां के बड़े फार्मों / लैबों में जा-जा कर सूक्ष्म से सूक्ष्म (माइनर लेबल तक) की जानकारियां लेते थे। वे बताते हैं कि 2002 में जब वे करीब छह महीने दक्षिण कोरिया में रहे, तो उस दौरान वहां घूमते समय वे हाइड्रोपोनिक फार्मिंग, माइक्रोग्रीन्स, पॉलीहाउस इंजीनियरिंग और सेफ्रॉन कल्टीवेशन जैसी एडवांस फार्मिंग तकनीक से रूबरू हुए। उस फार्मिंग सिस्टम से न केवल वे काफी प्रभावित हुए, बल्कि वहीं से उन्हें इस क्षेत्र (फील्ड) में कुछ करने की प्रेरणा मिली। नोएडा सेक्टर-25 में रहने वाले रमेश गेरा ने सेक्टर-63 में अपना फार्मिंग सेंटर बना रखा है।

दरअसल, साउथ कोरिया में खेती की एडवांस तकनीक देखकर रमेश ने सोचा कि क्यों न इस टेकनोलोजी को अपने देश में प्रचारित किया जाए। उन्होंने अपने काम के साथ-साथ, छह महीने तक कोरिया में खेती की इन नयी तकनीकों को पूरी गंभीरता से सीखा और वापस आकर नोएडा के सेक्टर 63 में 100 स्क्वायर फुट के एक कमरे में केसर उगाने का पूरा सेटअप तैयार किया। हालांकि, शुरुआती दौर में खुद से उपकरण और एक हाल कमरे में फार्म तैयार करके केसर का उत्पादन कर अच्छी कमाई की लेकिन अब उन्होंने एडवांस फार्मिंग के लिए ज्यादा से ज्यादा लोगों को (प्रशिक्षित) ट्रेंड करने का बीड़ा उठाया है। उनके मुताबिक, करीब एक साल से इस प्रयोग में लगे रमेश गेरा अब ज्यादातर आॅन लाइन क्लासेज चलाकर लोगों को एडवांस फार्मिंग की बारीकियां सिखाते हैं।

केसर उगाने का सेटअप लगाने के खर्च और उससे होने वाले फायदे के सवाल पर वे कहते हैं, ‘वैसे ये अब मेरे लिए पुरानी बात हो चुकी है लेकिन फिर भी आप जानना चाहते हैं तो जान लें कि इसमें करीब चार लाख रुपये का खर्च आया, बीज मैंने कश्मीर से मंगवाया था जिसमें करीब दो लाख रुपये लगे। केसर की डिमांड और खपत के मद्देनजर उन्होंने बताया, कि भारत में केसर की जितनी डिमांड है, उसके सिर्फ 30 फीसद की आपूर्ति ही कश्मीर से हो पाती है, बाकी 70 फीसदी केसर ईरान से इंपोर्ट होता है। यह जो डिमांड और सप्लाई के बीच का गैप है, वही अपने आप में एक बहुत बड़ी मार्केट है। इसी गैप को पूरा करने की कोशिश में उन्होंने इस ओर कदम बढ़ाया है।

बात करें केसर फार्मिंग की तो इस बारे में केसर किसान और फार्मिंग ट्रेनर रमेश के मुताबिक, इसकी फसल लेने में ज्यादा लोगों की जरूरत नहीं होती, आपके घर का कोई एक सदस्य भी इस खेती/बिजनेस को आराम से संचालित कर सकता है।

रमेश गेरा ने बताया, ‘‘इसमें बीज के बाद बिजली के खर्च के अलावा और कोई मंथली खर्च भी नहीं लगता है। हां, अलबत्ता चार महीने जब हम सिस्टम को आॅन रखते हैं, तो इस अवधि का बिजली का बिल का औसत करीब चार से साढ़े चार हजार रुपया महीना पड़ता है। इसके बाद हम इसे स्विच आॅफ कर देते हैं।’’

करीब डेढ़ सौ लोगों को दी ट्रेनिंग
केसर की मार्केट की चर्चा में वे बताते हैं, ‘‘केसर बहुत ही अच्छे रेट पर बिकता है, अगर आप होलसेल में बेचना चाहें, तो एक किलो केसर की कीमत ढाई लाख रुपये तक आराम से मिल जाती है। जहां तक रिटेल बिक्री की बात है, उसमें अगर पैकेजिंग करके एक ग्राम, दो ग्राम, पांच ग्राम के पैकेट्स में बेच सकें, तो 3.50 लाख रुपये और अगर एक्सपोर्ट करते हैं, तो 6 लाख रुपये तक की कमाई भी की जा सकती है।’’
2017 में पत्नी के देहान्त के बाद अपने दो बच्चों की देख-रेख की मजबूरी में नौकरी से अवकाश लेने वाले रमेश ने अपनी हॉबी को परवान चढ़ाने, समय का सदुपयोग करने और लोगों को नई तकनीक से परिचित कराने के बहाने समाजसेवा और आय बढ़ाने के उद्देश्य से अब एडवांस फार्मिंग के विकास में ही खुद को खपा रखा है। फिलहाल, आॅन लाइन प्रशिक्षण के अलावा वे नोएडा में ही ‘आकर्षक सेफ्रॉन इंस्टीट्यूट’ नाम से ट्रेनिंग सेंटर भी चला रहे हैं और अब तक करीब डेढ़ सौ लोगों को केसर उगाने की यह तकनीक सिखा चुके हैं। ल्ल

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