ICAR-IIWBR ने विकसित की रतुआ जैसी कई बीमारियों के प्रति प्रतिरोधी गेहूं की 3 नई किस्में  

नर्सरी टुडे डेस्क

नई दिल्ली। बीते कुछ सालों से गेहूं के उत्पादन पर असर पड़ रहा है। कभी बढ़ते तापमान की वजह से तो कभी बीमारियों के प्रकोप की वजह से गेहूं का उत्पादन घट ही रहा है। ऐसे में वैज्ञानिक के सामने चुनौती है ऐसी किस्मों को विकसित करने की, जिन पर बीमारियों और बढ़ते तापमान का असर न हो और बढ़िया उत्पादन भी मिले।

इसको देखते हुए आईसीएआर-भारतीय गेहूँ और जौ अनुसंधान संस्थान, करनाल, हरियाणा (ICAR-IIWBR) ने 3 नई बायो फोर्टिफाइड (Bio-fortified) किस्में- DBW-370 (करण वैदेही), DBW-371 (करण वृंदा), DBW-372 (करण वरुणा) विकसित की हैं। इनका उत्पादन पहले की किस्मों से कहीं ज्यादा है।

ICAR-IIWBR के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. अमित कुमार शर्मा ने नर्सरी टुडे से बताया, ‘जिस तरह तापमान बढ़ रहा है, हम लोग हीट प्रतिरोधी किस्में विकसित कर रहे हैं, ताकि गेहूं उत्पादन पर असर न पड़े। ये सभी किस्में बायो फोर्टिफाइड किस्में हैं, जिनमें और भी कई खूबियां हैं।‘

गौरतलब है कि उत्तरी गंगा-सिंधु के मैदानी क्षेत्र देश के सबसे उपजाऊ और गेहूं के सर्वाधिक उत्पादन वाले क्षेत्र हैं। इस क्षेत्र में गेहूं के मुख्य उत्पादक राज्य जैसे पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान (कोटा और उदयपुर सम्भाग को छोड़कर) पश्चिमी उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड के तराई क्षेत्र, जम्मू कश्मीर के जम्मू और कठुआ जिले, हिमाचल प्रदेश का ऊना जिला और पोंटा घाटी शामिल हैं।

क्या खास है इन किस्मों में

DBW-370 (Karan Vaidehi): इसकी उत्पादन क्षमता 86.9 क्विंटल प्रति हेक्टेयर और औसत उपज 74.9 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है। पौधों की ऊँचाई 99 सेमी और पकने की अवधि 151 दिन और 1000 दानों का भार 41 ग्राम होता है। इस किस्म में प्रोटीन कंटेंट 12 प्रतिशत, जिंक 37.8 पीपीएम और लौह तत्व 37.9 पीपीएम होता है।

DBW-371 (Karan Vrinda): यह किस्म सिंचित क्षेत्रों में अगेती बुवाई के लिए विकसित की गई है। इस किस्म की खेती पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान (कोटा व उदयपुर सम्भाग को छोड़कर) पश्चिमी उत्तर प्रदेश (झाँसी मंडल को छोड़कर), जम्मू कश्मीर के जम्मू और कठुआ जिले , हिमाचल प्रदेश का ऊना जिला, पोंटा घाटी और उत्तराखंड के तराई क्षेत्रों में की जा सकती है।

इसकी उत्पादन क्षमता 87.1 क्विंटल प्रति हेक्टेयर और औसत उपज 75.1 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है। पौधों की ऊँचाई 100 सेमी और पकने की अवधि 150 दिन और 1000 दानों का भार 46 ग्राम होता है। इस किस्म में प्रोटीन कंटेंट 12.2 प्रतिशत, जिंक 39.9 पीपीएम और लौह तत्व 44.9 पीपीएम होता है।

DBW-372 (Karan Varuna): इसकी उत्पादन क्षमता 84.9 क्विंटल प्रति हेक्टेयर और औसत उपज 75.3 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है। पौधों की ऊँचाई 96 सेमी और पकने की अवधि 151 दिन और 1000 दानों का भार 42 ग्राम होता है। इस किस्म में प्रोटीन कंटेंट 12.2 प्रतिशत, जिंक 40.8 पीपीएम और लौह तत्व 37.7 पीपीएम होता है। इस किस्म के पौधे 96 सेमी के होते हैं, जिससे इनके पौधे तेज हवा चलने पर भी नहीं गिरते हैं।

कई रोगों की प्रतिरोधी हैं ये तीनों किस्में

ये किस्में पीला और भूरा रतुआ की सभी रोगजनक प्रकारों के लिए प्रतिरोधक पायी गई हैं, जबकि DBW-370 और DBW-372 करनाल बंट रोग प्रति अधिक प्रतिरोधक पाई गई है।

यहाँ मिलेगा बीज

रबी सत्र 2023-24 के लिए आईसीएआर-भारतीय गेहूं और जौ अनुसंधान संस्थान, करनाल, हरियाणा के सीड पोर्टल https://iiwbr.icar.gov.in/ पर प्राप्त कर सकते हैं।

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