देश में नई खेती का प्रयोग सफल, अब होगी हींग की खेती

हिमालया जैव प्रद्योगिकी संस्थान पालमपुर के कृषि वैज्ञानिकों ने 2020 में अफगानिस्तान और ईरान से हींग (Asafoetida) के बीज मंगाए थे। 3 वर्षों के बाद अब हींग के पौधे बड़े हो गए हैं। अगले 2 वर्षों में इनसे हींग मिलने लगेगी। इस प्रयोग से देश में नई खेती का रास्ता मिला है।

रवि प्रकाश मौर्य
नई दिल्ली। खाने में हींग (Asafoetida) का बहुत बड़ा महत्त्व है। दाल में इसका तड़का लग जाए तो इसका स्वाद ही अलग हो जाता है। सबसे बड़ी बात यह कि हींग के बेशुमार आयुर्वेदिक फायदे हैं। आमतौर पर हींग को मसाले के रूप में इस्तेमाल किया जाता है, लेकिन ‘मसालों का देश’ कहे जाने वाले भारत देश में इसकी खेती अभी तक सपना ही रही है। अब ये सपना, सपना नहीं रहेगा क्योंकि हिमालय जैव प्रौद्योगिकी संस्थान, पालमपुर के कृषि वैज्ञानिकों ने इस सपने को हकीकत में बदलने का एक सफल प्रयोग किया है। अब अपने यहां भी इसकी खेती की जा सकेगी।

बता दें कि हिमाचल प्रदेश स्थित हिमालया जैव प्रद्योगिकी संस्थान, पालमपुर के कृषि वैज्ञानिकों ने 2020 में अफगानिस्तान और ईरान से हींग के कुछ बीज मंगाए थे। तकरीबन 3 सालों की मेहनत के बाद कृषि वैज्ञानिकों ने बीज से हींग के पौधे तैयार कर लिए। इसके साथ ही कृषि वैज्ञानिकों ने हिमाचल प्रदेश के जनजातीय जिले के लाहौल स्पीति में ट्रायल के तौर पर 7 किसानों को हींग की खेती का प्रशिक्षण और पौधे भी दिए। इस तरह करीब 11 हज़ार फीट की ऊंचाई पर हींग की खेती (Cultivation of Asafoetida) की शुरुआत हुई। अब जाकर 3 वर्षों बाद हींग के पौधे बड़े हो गए हैं। कृषि वैज्ञानिकों की मानें तो अगले 2 वर्षों में इन पौधों से हींग मिलने लगेगा।

हिमालया जैव प्रद्योगिकी संस्थान, पालमपुर के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. अशोक यादव ने ‘नर्सरी टुडे’ को बताया कि जब वर्ष 2020 में कृषि वैज्ञानिकों ने किसानों को हींग के पौधे दिए, तब उन्हें कोई खास उम्मीद नहीं थी, लेकिन अब वह इन पौधे को देख रहे हैं, तो वह काफी बड़े हो गए हैं और पैदावार देने के लिए तैयार हो गए हैं। इसका प्रयोग सफल होने के बाद अब इसकी बड़े पैमाने पर खेती की जा सकेगी। जाहिर है आने वाले कुछ सालों में हींग की खेती से किसानों की आय में बढ़ोतरी होगी और हम हींग को निर्यात भी कर सकेंगे।
डॉ. अशोक यादव की मानें तो हींग की खेती के लिए कम नमी वाला स्थान और अत्यधिक ठंडा क्षेत्र चाहिए इसलिए सबसे पहले इसकी खेती के लिए ‘लाहौल स्पीति’ को चुना गया था। अब हिमाचल में किन्नौर, मंडी, कुल्लू, चंबा, पांगी के ऊपरी इलाकों में हींग की खेती का परीक्षण किया जा रहा है। बीते वर्षों से अब तक कुल 7 हेक्टेयर जमीन पर 47 हज़ार हींग के पौधे रोप गए हैं। इनमें से अधिकतर पौधे कामयाब हुए हैं।
डॉ. अशोक यादव ने बताया कि हींग की खेती के लिए 20 से 30 डिग्री तापमान होना जरूरी है। हींग की खेती के लिए उत्तराखंड के पहाड़ी इलाके, लद्दाख, हिमाचल स्थित जनझेली का पहाड़ी क्षेत्र भी उपयुक्त माना गया है।

लाहौल के क्वारिंग गांव में सबसे पहले हींग की खेती की शुरुआत करने वाले किसान रिन्हागजिंग हांयरप्पा ने बताया, ‘मैंने ईरानी और अफगानी दोनों प्रजातियों के पौधे लगाए हैं। 2020 में मैंने हींग के इन पौधों को 12 हज़ार फीट की ऊंचाई पर रोपा था, लेकिन सफल नहीं हुआ। इसके बाद मैंने इन पौधों को 11 हज़ार फीट की ऊंचाई पर लगाया। इस बार ये सफल रहा।

रिन्हागजिंग हांयरप्पा ने बताया कि सबसे पहले लाहौल के 7 किसानों को हींग की दोनों किस्मों के 100 पौधे दिए गये थे। करीब 3 वर्षों के बाद उन्हें ये अनुभव हुआ कि यहां हींग की खेती की सफलता का अनुपात 30 से 40 फीसदी ही है। हांयरप्पा आगे कहते हैं कि किसी समय में लाहौल उन्नत किस्म के आलू की फसल के लिए जाना जाता था। अब हम चाहते है कि लाहौल को हींग की खेती की उन्नत किस्म के लिए जाना जाए।

लाहौल में हींग की खेती करने वाले एक अन्य किसान तेनजिन नोर्वु ने बताया कि हिमालया जैव प्रद्योगिकी संस्थान, पालमपुर से जब उन्हें हींग के पौधे मिले थे तो उन्होंने उसे अक्टूबर के महीने में समतल जगह पर लगाया था। समतल जगह पर पानी टिकने से कई पौधे सड़ गए। दूसरे वर्ष उन्होंने नए पौधों को ढलानदार जगह पर लगाया, तब जाकर उन्हें कामयाबी मिली।

बता दें कि हिमाचल प्रदेश के पांच जिलों में ऐसे स्थानों को चुना गया है, जहां हींग की खेती के लिए प्रशिक्षण दिया जा रहा है। इसमें सबसे ज्यादा कामयाबी लाहौल में देखने को मिल रही है।

भारत में हींग की खपत
बता दें कि भारत में हींग का सबसे ज्यादा इस्तेमाल किया जाता है। देश में हींग की सालाना खपत करीब 1500 टन है। आंकड़ों के हिसाब देखें तो इसकी कीमत 940 करोड़ रुपये से भी ज्यादा बैठती है। चूंकि इसकी खेती अपने देश में नहीं होती इसलिए हम हर साल अपनी खपत का अफगानिस्तान से 90, उज्बेकिस्तान से 8 और ईरान से 2 फीसदी हींग आयात करते हैं। अंतरराष्ट्रीय बाजार में हींग की कीमत की बात की जाए तो ये तकरीबन 35 से 40 हजार रुपये प्रति किलो तक बिकती है। गौरतलब है कि हींग के एक पौधे से करीब आधा किलो तक हींग प्राप्त होती है और इसमें भी पांच साल का समय लगता है।

हींग की खेती क्यों है लाभदायक?
हींग को अंग्रेजी में एस्फोटिडा (Asafoetida) कहते हैं। इसे फेरुला एस्टीफेडा (Ferula Asafetida) नामक पेड़ की जड़ से प्राप्त किया जाता है। हींग के अनगिनत लाभ हैं, इसलिए इसकी खेती बेहद फायदे का सौदा है। आइए जानते हैं इसके कुछ फायदों के बारे में…

दांत का दर्द दूर करने में सहायक: दांत के दर्द में हींग का सेवन बेहद लाभकारी माना जाता है। गुनगुने पानी में थोड़ी-सी हींग डालकर 2-3 बार कुल्ला करने से दांत के दर्द में आराम तो मिलता ही है, मुंह में मौजूद हानिकारक बैक्टीरिया भी मर जाते हैं।

नपुंसकता में कारगर: जिन पुरुषों को नपुंसकता (Erectile dysfunction) और शीघ्रपतन की समस्या होती है, उनके लिए हींग रामबाण इलाज माना जाता है। आयुर्वेदाचार्यों के अनुसार, एक गिलास गर्म पानी में हींग पाउडर मिलाकर पीने से खून का प्रवाह तेज होता है, जिससे नपुंसकता खत्म होती है। इसके अलावा हींग पाउडर में आधा चम्मच शहद और अदरक का रस मिलाकर खाने से खांसी और ब्रोंकाइटिस की बीमारी में आराम मिलता है।

बचाए कैंसर से: शक्तिशाली एंटी ऑक्सीडेंट्स वाली हींग लगातार खाने पर यह फ्री रेडिकल्स से शरीर का बचाव करती है। इसकी कैंसर प्रतिरोधी क्षमता कैंसर कोशिकाओं के विकास में रुकावट पैदा करती है।
किडनी को रखे स्वस्थ: डाइट में नियमित रूप से हींग का सेवन गुर्दे यानी किडनी की बीमारी से बचाता है। दरअसल, हींग शरीर से विषाक्त पदार्थ को निकालने में मदद करती है, जो किडनी के लिए एक तरह से सहायता होती है।

अपच से बचाए: हींग में एंटी-इनफ्लेमटरी और एंटी-ऑक्सीडेंट्स तत्व होते हैं, जो अपच (indigestion) के इलाज मददगार है। हींग कब्ज की समस्या से भी बचाती है। पेट दर्द हो या पेट फूला लगे, हींग का सेवन इन समस्याओं से छुटकारा दिलाता है और पेट की सेहत भी अच्छी बनी रहती है।

sosyal medya reklam ajansları en iyi sosyal medya ajansları medya ajansları istanbul reklam ajansları istanbul reklam ajansları reklam şirketleri en iyi reklam ajansları en ünlü reklam ajansları en iyi ajanslar listesi